Sunday, 24 February 2019

‘मन की बात’ (53वीं कड़ी)


                               प्रसारण तिथि: 24.02.2019

मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | ‘मन की बात’ शुरू करते हुए आज मन भरा हुआ है | 10 दिन पूर्व, भारत-माता ने अपने वीर सपूतों को खो दिया | इन पराक्रमी वीरों ने, हम सवा-सौ करोड़ भारतीयों की रक्षा में ख़ुद को खपा दिया | देशवासी चैन की नींद सो सकें, इसलिए, इन हमारे वीर सपूतों ने, रात-दिन एक करके रखा था | पुलवामा के आतंकी हमले में, वीर जवानों की शहादत के बाद देश-भर में लोगों को, और लोगों के मन में, आघात और आक्रोश है | शहीदों और उनके परिवारों के प्रति, चारों तरफ संवेदनाएँ उमड़ पड़ी हैं | इस आतंकी हिंसा के विरोध में, जो आवेग आपके और मेरे मन में है, वही भाव, हर देशवासी के अंतर्मन में है और मानवता में विश्वास करने वाले विश्व के भी मानवतावादी समुदायों में है | भारत-माता की रक्षा में, अपने प्राण न्योछावर करने वाले, देश के सभी वीर सपूतों को, मैं नमन करता हूँ | यह शहादत, आतंक को समूल नष्ट करने के लिए हमें निरन्तर प्रेरित करेगी, हमारे संकल्प को और मजबूत करेगी | देश के सामने आयी इस चुनौती का सामना, हम सबको जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद और बाकि सभी मतभेदों को भुलाकर करना है ताकि आतंक के खिलाफ़ हमारे कदम पहले से कहीं अधिक दृढ़ हों, सशक्त हों और निर्णायक हों | हमारे सशस्त्र बल हमेशा ही अद्वितीय साहस और पराक्रम का परिचय देते आये हैं | शांति की स्थापना के लिए जहाँ उन्होंने अद्भुत क्षमता दिखायी है वहीँ हमलावरों को भी उन्हीं की भाषा में जबाव देने का काम किया है | आपने देखा होगा कि हमले के 100 घन्टे के भीतर ही किस प्रकार से कदम उठाये गये हैं | सेना ने आतंकवादियों और उनके मददगारों के समूल नाश का संकल्प ले लिया है | वीर सैनिकों की शहादत के बाद, मीडिया के माध्यम से उनके परिजनों की जो प्रेरणादायी बातें सामने आयी हैं उसने पूरे देश के हौंसले को और बल दिया है | बिहार के भागलपुर के शहीद रतन ठाकुर के पिता रामनिरंजन जी ने, दुःख की इस घड़ी में भी जिस ज़ज्बे का परिचय दिया है, वह हम सबको प्रेरित करता है | उन्होंने कहा कि वे अपने दूसरे बेटे को भी दुश्मनों से लड़ने के लिए भेजेंगे और जरुरत पड़ी तो ख़ुद भी लड़ने जाएँगे | ओड़िशा के जगतसिंह पुर के शहीद प्रसन्ना साहू की पत्नी मीना जी के अदम्य साहस को पूरा देश सलाम कर रहा है | उन्होंने अपने इकलौते बेटे को भी CRPF join कराने का प्रण लिया है | जब तिरंगे में लिपटे शहीद विजय शोरेन का शव झारखण्ड के गुमला पहुँचा तो मासूम बेटे ने यही कहा कि मैं भी फौज़ में जाऊँगा | इस मासूम का जज़्बा आज भारतवर्ष के बच्चे-बच्चे की भावना को व्यक्त करता है | ऐसी ही भावनाएँ, हमारे वीर, पराक्रमी शहीदों के घर-घर में देखने को मिल रही हैं | हमारा एक भी वीर शहीद इसमें अपवाद नहीं है, उनका परिवार अपवाद नहीं है | चाहे वो देवरिया के शहीद विजय मौर्य का परिवार हो, कांगड़ा के शहीद तिलकराज के माता-पिता हों या फिर कोटा के शहीद हेमराज का छः साल का बेटा हो – शहीदों के हर परिवार की कहानी, प्रेरणा से भरी हुई हैं | मैं युवा-पीढ़ी से अनुरोध करूँगा कि वो, इन परिवारों ने जो जज़्बा दिखाया है, जो भावना दिखायी है उसको जानें, समझने का प्रयास करें | देशभक्ति क्या होती है, त्याग-तपस्या क्या होती है – उसके लिए हमें इतिहास की पुरानी घटनाओं की ओर जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी | हमारी आँखों के सामने, ये जीते-जागते उदहारण हैं और यही उज्ज्वल भारत के भविष्य के लिए प्रेरणा का कारण हैं |

मेरे प्यारे देशवासियो, आजादी के इतने लम्बे समय तक, हम सबको, जिस war memorial का इन्तजार था, वह अब ख़त्म होने जा रहा है | इसके बारे में देशवासियों की जिज्ञासा, उत्सुकता बहुत स्वाभाविक है | NarendraModiApp पर उडुपी, कर्नाटक के श्री ओंकार शेट्टी जी ने National War Memorial तैयार होने पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की है | मुझे आश्चर्य भी होता था और पीड़ा भी कि भारत में कोई National War Memorial नहीं था | एक ऐसा मेमोरियल, जहाँ राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर जवानों की शौर्य-गाथाओं को संजो कर रखा जा सके | मैंने निश्चय किया कि देश में, एक ऐसा स्मारक अवश्य होना चाहिये |

हमने National War Memorial के निर्माण का निर्णय लिया और मुझे खुशी है कि यह स्मारक इतने कम समय में बनकर तैयार हो चुका है | कल, यानि 25 फरवरी को, हम करोड़ों देशवासी इस राष्ट्रीय सैनिक स्मारक को, हमारी सेना को सुपुर्द करेंगे | देश अपना कर्ज चुकाने का एक छोटा सा प्रयास करेगा |

दिल्ली के दिल यानि वो जगह, जहाँ पर इंडिया गेट और अमर जवान ज्योति मौजूद है बस उसके ठीक नज़दीक में, ये एक नया स्मारक बनाया गया है | मुझे विश्वास है ये देशवासियों के लिए राष्ट्रीय सैनिक स्मारक जाना किसी तीर्थ स्थल जाने के समान होगा | राष्ट्रीय सैनिक स्मारक स्वतंत्रता के बाद सर्वोच्च बलिदान देने वाले जवानों के प्रति राष्ट्र की कृतज्ञता का प्रतीक है | स्मारक का डिजाईन, हमारे अमर सैनिकों के अदम्य साहस को प्रदर्शित करता है | राष्ट्रीय सैनिक स्मारक का concept, Four Concentric Circles यानी चार चक्रों पर केंद्रित है, जहाँ एक सैनिक के जन्म से लेकर शहादत तक की यात्रा का चित्रण है | अमर चक्र की लौ, शहीद सैनिक की अमरता का प्रतीक है | दूसरा circle वीरता चक्र का है जो सैनिकों के साहस और बहादुरी को प्रदर्शित करता है | यह एक ऐसी gallery है जहाँ दीवारों पर सैनिकों की बहादुरी के कारनामों को उकेरा गया है | इसके बाद, त्याग चक्र है यह circle सैनिकों के बलिदान को प्रदर्शित करता है | इसमें देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले सैनिकों के नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखे गए हैं | इसके बाद रक्षक चक्र, सुरक्षा को प्रदर्शित करता है | इस circle में घने पेड़ों की पंक्ति है | ये पेड़ सैनिकों के प्रतीक हैं और देश के नागरिकों को यह विश्वास दिलाते हुए सन्देश दे रहे हैं कि हर पहर सैनिक सीमा पर तैनात है और देशवासी सुरक्षित है | कुल मिला कर देखें तो राष्ट्रीय सैनिक स्मारक की पहचान एक ऐसे स्थान के रूप में बनेगी जहाँ लोग देश के महान शहीदों के बारे में जानकारी लेने, अपनी कृतज्ञता प्रकट करने, उन पर शोध करने के उद्देश्य से आयेंगे | यहाँ उन बलिदानियों की कहानी है जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण नयौछावर कर दिए हैं ताकि हम जीवित रह सकें ताकि देश सुरक्षित रहे और विकास कर सके | देश के विकास में हमारे सशस्त्र बलों, पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के महान योगदान को शब्दों में अभिव्यक्त करना संभव नहीं है | पिछले साल अक्टूबर में मुझे National Police Memorial को भी देश को समर्पित करने का सौभाग्य मिला था | वह भी हमारे उस विचार का प्रतिबिम्ब था जिसके तहत हम मानते हैं कि देश को उन पुरुष और महिला पुलिसकर्मियों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए जो अनवरत हमारी सुरक्षा में जुटे रहते हैं | मैं आशा करता हूँ कि आप राष्ट्रीय सैनिक स्मारक और National Police Memorial को देखने जरुर जायेंगे | आप जब भी जाएँ वहाँ ली गयी अपनी तस्वीरों को social media  पर अवश्य share करें ताकि दूसरें लोगों को भी इससे प्रेरणा मिले और वे भी इस पवित्र स्थल, इस memorial को देखने के लिए उत्सुक हों |
    मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ के लिए आपके हजारों पत्र और comment, मुझे अलग-अलग माध्यमों से पढ़ने को मिलते रहते हैं | इस बार जब मैं आपके comment पढ़ रहा था तब मुझे ‘आतिश मुखोपाध्याय जी’ की एक बहुत ही रोचक टिप्पणी मेरे ध्यान में आई | उन्होंने लिखा है कि वर्ष 1900 में 3 मार्च को, अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया था तब उनकी उम्र सिर्फ 25 साल की थी ये संयोग ही है कि 3 मार्च को ही जमशेदजी टाटा की जयंती भी है | और वे आगे लिखते हैं ये दोनों व्यक्तित्व पूरी तरह से दो अलग-अलग पारिवारिक पृष्ठभूमि से हैं जिन्होंने झारखण्ड की विरासत और इतिहास को समृद्ध किया | ‘मन की बात’ में बिरसा मुंडा और जमशेदजी टाटा को श्रद्दांजलि देने का एक प्रकार से झारखण्ड के गौरवशाली इतिहास और विरासत को नमन् करने जैसा है | आतिश जी मैं आपसे सहमत हूँ | इन दो महान विभूतियों ने झारखण्ड का नहीं पूरे देश का नाम बढ़ाया है | पूरा देश उनके योगदान के लिए कृतज्ञ है | आज, अगर हमारे नौजवानों को मार्गदर्शन के लिए किसी प्रेरणादायी व्यक्तित्व की जरुरत है तो वह है भगवान बिरसा मुंडा | अंग्रेजों ने छिप कर, बड़ी ही चालाकी से उन्हें उस वक़्त पकड़ा था जब वे सो रहे थे | क्या आप जानते हैं कि उन्होंने ऐसी कायरतापूर्ण कार्यवाही का सहारा क्यों लिया ? क्योंकि इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा करने वाले अंग्रेज भी उनसे भयभीत रहते थे | भगवान बिरसा मुंडा ने सिर्फ अपने पारंपरिक तीर-कमान से ही बंदूकों और तोपों से लैस अंग्रेजी शासन को हिलाकर रख दिया था | दरअसल, जब लोगों को एक प्रेरणादायी नेतृत्व मिलता है तो फिर हथियारों की शक्ति पर लोगों की सामूहिक इच्छाशक्ति भारी पड़ती है | भगवान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों से ना केवल राजनीतिक आज़ादी के लिए संघर्ष किया बल्कि आदिवासियों के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी | अपने छोटे से जीवन में उन्होंने ये सब कर दिखाया | वंचितों और शोषितों के अंधेरे से भरे जीवन में सूरज की तरह चमक बिखेरी | भगवान बिरसा मुंडा ने 25 वर्ष की अल्प आयु में ही अपना बलिदान दे दिया | बिरसा मुंडा जैसे भारत माँ के सपूत, देश के हर भाग में हुए है | शायद हिंदुस्तान का कोई कोना ऐसा होगा कि सदियों तक चली हुई आज़ादी की इस जंग में, किसी ने योगदान ना दिया हो | लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इनके त्याग, शौर्य और बलिदान की कहानियाँ नई पीढ़ी तक पहुँची ही नहीं | अगर, भगवान बिरसा मुंडा जैसे व्यक्तित्व ने हमें अपने अस्तित्व का बोध कराया तो जमशेदजी टाटा जैसी शख्सियत ने देश को बड़े-बड़े संस्थान दिए | जमशेदजी टाटा सही मायने में एक दूरदृष्टा थे, जिन्होंने ना केवल भारत के भविष्य को देखा बल्कि उसकी मजबूत नींव भी रखी | वे भलीभांति जानते थे कि भारत को science, technology और industry का hub बनाना भविष्य के लिए आवश्यक है | ये उनका ही vision था जिसके परिणामस्वरूप Tata Institute of Science की स्थापना हुई जिसे अब Indian Institute of Science कहा जाता है | यही नहीं उन्होंने Tata Steel जैसे कई विश्वस्तरीय संस्थानों को और उद्योगों की भी स्थापना की | जमशेदजी टाटा और स्वामी विवेकानंद जी की मुलाकात अमेरिकी यात्रा के दौरान ship में हुई थी, तब उन दोनों की चर्चा में एक महत्वपूर्ण topic भारत में science और technology के प्रचार-प्रसार से जुड़ा हुआ था | कहते हैं... इसी चर्चा से Indian Institute of Science की नींव पड़ी |
मेरे प्यारे देशवासियो, हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई का जन्म 29 फरवरी को हुआ था | जैसा कि आप सभी जानते हैं कि यह दिन 4 वर्ष में एक बार ही आता है | सहज, शांतिपूर्ण व्यक्तित्व के धनी, मोरारजी भाई देश के सबसे अनुशासित नेताओं में से थे | स्वतंत्र भारत में संसद में सबसे अधिक बजट पेश करने का record मोरारजी भाई देसाई के ही नाम है | मोरारजी देसाई ने उस कठिन समय में भारत का कुशल नेतृत्व किया, जब देश के लोकतान्त्रिक ताने-बाने को खतरा था | इसके लिए हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी उनकी आभारी रहेंगी | मोरारजी भाई देसाई ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए आपातकाल के खिलाफ आन्दोलन में खुद को झोंक दिया | इसके लिए उन्हें वृद्धावस्था में भी भारी कीमत चुकानी पड़ी | उस समय की सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया | लेकिन 1977 में जब जनता पार्टी चुनाव जीती तो वे देश के प्रधानमंत्री बने | उनके कार्यकाल के दौरान ही 44वाँ संविधान संशोधन लाया गया | यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि emergency के दौरान जो 42वाँ संशोधन लाया गया था, जिसमें सुप्रीमकोर्ट की शक्तियों को कम करने और दूसरे ऐसे प्रावधान थे, जो हमारे लोकतान्त्रिक मूल्यों का हनन करते थे - उनको वापिस किया गया | जैसे 44वें संशोधन के जरिये संसद और विधानसभाओं की कार्यवाही का समाचार पत्रों में प्रकाशन का प्रावधान किया गया | इसी के तहत, सुप्रीमकोर्ट की कुछ शक्तियों को बहाल किया गया | इसी संशोधन में यह भी प्रावधान किया गया कि संविधान के अनुछेद 20 और 21 के तहत मिले मौलिक-अधिकारों का आपातकाल के दौरान भी हनन नहीं किया जा सकता है | पहली बार ऐसी व्यवस्था की गई कि मंत्रिमंडल की लिखित अनुशंसा पर ही राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा करेंगे, साथ ही यह भी तय किया गया कि आपातकाल की अवधि को एक बार में छः महीने से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है | इस तरह से मोरारजी भाई ने यह सुनिश्चित किया कि आपातकाल लागू कर, 1975 में जिस प्रकार लोकतंत्र की हत्या की गई थी, वह भविष्य में फिर दोहराया ना जा सके | भारतीय लोकतंत्र के महात्म्य को बनाए रखने में उनके अमूल्य योगदान को, आने वाली पीढ़ियाँ हमेशा याद रखेंगी | एक बार फिर ऐसे महान नेता को मैं अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ |
    मेरे प्यारे देशवासियो, हर साल की तरह इस बार भी पद्म अवार्ड को लेकर लोगों में बड़ी उत्सुकता थी | आज हम एक न्यू इंडिया की ओर अग्रसर हैं | इसमें हम उन लोगों का सम्मान करना चाहते हैं जो grass-root level पर अपना काम निष्काम भाव से कर रहे हैं | अपने परिश्रम के बल पर अलग-अलग तरीके से दूसरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं | दरअसल वे सच्चे कर्मयोगी हैं, जो जनसेवा, समाजसेवा और इन सबसे से बढ़कर राष्ट्रसेवा में निःस्वार्थ जुटे रहते हैं | आपने देखा होगा जब पद्म अवार्ड की घोषणा होती है तो लोग पूछते हैं कि ये कौन है ? एक तरह से इसे मैं बहुत बड़ी सफलता मानता हूँ क्योंकि ये वो लोग हैं जो T.V., Magazine या अख़बारों के front page पर नहीं हैं | ये चकाचौंध की दुनिया से दूर हैं, लेकिन ये ऐसे लोग हैं, जो अपने नाम की परवाह नहीं करते बस जमीनी स्तर पर काम करने में विश्वास रखते हैं | ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ गीता के सन्देश को वो एक प्रकार से जीते हैं | मैं ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में आपको बताना चाहता हूँ | ओडिशा के दैतारी नायक के बारे में आपने जरुर सुना होगा उन्हें ‘Canal Man of the Odisha’  यूँ ही नहीं कहा जाता, दैतारी नायक ने अपने गाँव में अपने हाथों से पहाड़ काटकर तीन किलोमीटर तक नहर का रास्ता बना दिया | अपने परिश्रम से सिंचाई और पानी की समस्या हमेशा के लिए ख़त्म कर दी | गुजरात के अब्दुल गफूर खत्री जी को ही लीजिए, उन्होंने कच्छ के पारंपरिक रोगन पेंटिंग को पुनर्जीवित करने का अद्भुत कार्य किया | वे इस दुर्लभ चित्रकारी को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का बड़ा कार्य कर रहे हैं | अब्दुल गफूर द्वारा बनाई गई ‘Tree of Life’  कलाकृति को ही मैंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को उपहार में दिया था | पद्म पुरस्कार पाने वालों में मराठवाड़ा के शब्बीर सैय्यद गौ-माता के सेवक के रूप में जाने जाते हैं | उन्होंने जिस प्रकार अपना पूरा जीवन गौमाता की सेवा में खपा दिया ये अपने आप में अनूठा है | मदुरै चिन्ना पिल्लई वही शख्सियत हैं, जिन्होंने सबसे पहले तमिलनाडु में कलन्जियम आन्दोलन के जरिए पीड़ितों और शोषितों को सशक्त करने का प्रयास किया | साथ ही समुदाय आधारित लघु वित्तीय व्यवस्था की शुरुआत की | अमेरिका की Tao Porchon-Lynch के बारे में सुनकर आप सुखद आश्चर्य से भर जाएंगे | Lynch आज योग की जीती-जागती संस्था बन गई है | सौ वर्ष की उम्र में भी वे दुनिया भर के लोगों को योग का प्रशिक्षण दे रही हैं और अब तक डेढ़ हज़ार लोगों को योग शिक्षक बना चुकी हैं | झारखण्ड में ‘Lady Tarzan’ के नाम से विख्यात जमुना टुडू ने टिम्बर माफिया और नक्सलियों से लोहा लेने का साहसिक काम किया उन्होंने न केवल 50 हेक्टेयर जंगल को उजड़ने से बचाया बल्कि दस हज़ार महिलाओं को एकजुट कर पेड़ों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए प्रेरित किया | ये जमुना जी के परिश्रम का ही प्रताप है कि आज गाँववाले हर बच्चे के जन्म पर 18 पेड़ और लड़की की शादी पर 10 पेड़ लगाते हैं | गुजरात की मुक्ताबेन पंकजकुमार दगली की कहानी आपको प्रेरणा से भर देगी, खुद दिव्यांग होते हुए भी उन्होंने दिव्यांग महिलाओं के उत्थान के लिए जो कार्य किए, ऐसा उदाहरण मिलना मुश्किल है | चक्षु महिला सेवाकुन्ज नाम की संस्था की स्थापना कर वे नेत्रहीन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के पुनीत कार्य में जुटी हैं | बिहार के मुजफ्फरपुर की किसान चाची, यानि राजकुमारी  देवी की कहानी बहुत ही प्रेरक है | महिला सशक्तिकरण और खेती को लाभकारी बनाने की दिशा में उन्होंने एक मिसाल पेश की है | किसान चाची ने अपने इलाके की 300 महिलाओं को ‘Self Help Group’  से जोड़ा और आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए प्रेरित किया | उन्होंने गाँव की महिलाओं को खेती के साथ ही रोज़गार के अन्य साधनों का प्रशिक्षण दिया | खास बात यह है कि उन्होंने खेती के साथ technology को जोड़ने का काम किया और मेरे देशवासियों, शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि इस वर्ष जो पद्म पुरस्कार दिए गए उसमें 12 किसानों को पद्म पुरस्कार मिले हैं | आमतौर पर कृषि जगत से जुड़े हुए बहुत ही कम लोग और प्रत्यक्ष किसानी करने वाले बहुत ही कम लोग पद्मश्री की सूची में आये हैं | ये अपने आप में, ये बदलते हुए हिन्दुस्तान की जीती-जागती तस्वीर है |             
मेरे प्यारे देशवासियो, मैं आज आप सब के साथ एक ऐसे दिल को छूने वाले अनुभव के बारे में बात करना चाहता हूँ जो पिछले कुछ दिनों से मैं महसूस कर रहा हूँ | आजकल देश में जहाँ भी जा रहा हूँ, मेरा प्रयास रहता है कि ‘आयुष्मान भारत’ की योजना PM-JAY यानि PM जन आरोग्य योजना के कुछ लाभार्थियों से मिलूं | कुछ लोगों से बातचीत करने का अवसर मिला है | अकेली माँ उसके छोटे बच्चे पैसों के अभाव में इलाज नहीं करवा पा रही थी | इस योजना से उसका इलाज हुआ और वो स्वस्थ हो गई | घर का मुखिया, मेहनत-मजदूरी करके अपने परिवार की देखभाल करने वाला accident का शिकार हो गया, काम नहीं कर पा रहा था - इस योजना से उसको लाभ मिला और वो पुनः स्वस्थ हुआ, नई ज़िन्दगी जीने लगा |
भाइयों-बहनों पिछले पाँच महीनों में लगभग बारह लाख ग़रीब परिवार इस योजना का लाभ उठा चुके हैं | मैंने पाया कि ग़रीब के जीवन में इससे कितना बड़ा परिवर्तन आ रहा है | आप सब भी यदि किसी भी ऐसे ग़रीब व्यक्ति को जानते है जो पैसों के अभाव में इलाज नहीं करा पा रहा हो | तो उसे इस योजना के बारे में अवश्य बताइये | यह योजना हर ऐसे ग़रीब व्यक्ति के लिए ही है |
मेरे प्यारे देशवासियो, स्कूलों में परीक्षा का समय शुरू होने ही वाला है | देशभर में अलग-अलग शिक्षा बोर्ड अगले कुछ हफ़्तों में दसवीं और बारहवीं कक्षा के board के इम्तिहान के लिए प्रक्रिया प्रारंभ करेंगें | परीक्षा देने वाले सभी विद्यार्थियों को, उनके अभिभावकों को और सभी teachers को मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ हैं |
कुछ दिन पहले दिल्ली में ‘परीक्षा पे चर्चा’ का एक बहुत बड़ा आयोजन Town Hall के format में हुआ | इस Town Hall कार्यक्रम में मुझे technology के माध्यम से, देश-विदेश के करोड़ों students के साथ, उनके अभिभावकों के साथ, teachers के साथ, बात करने का अवसर मिला |   ‘परीक्षा पे चर्चा’ इसकी एक विशेषता यह रही कि परीक्षा से जुड़ें विभिन्न विषयों पर खुल कर बातचीत हुई | कई ऐसे पहलू सामने आए जो निश्चित रूप से विद्यार्थियों के लिए लाभदायक हो सकते हैं | सभी विद्यार्थी, उनके शिक्षक, माता-पिता YouTube पर इस पूरे कार्यक्रम की recording देख सकते हैं, तो आने वाली परीक्षा के लिए मेरे सभी exam warriors को ढ़ेरो शुभकामनाएँ |
मेरे प्यारे देशवासियो, भारत की बात हो और त्यौहार की बात न हो | ऐसा हो ही नहीं सकता | शायद ही हमारे देश में कोई दिन ऐसा नहीं होता है, जिसका महत्व ही न हो, जिसका कोई त्यौहार न हो | क्योंकि हज़ारों वर्ष पुरानी संस्कृति की ये विरासत हमारे पास है | कुछ दिन बाद महाशिवरात्रि का पर्व आने वाला है और इस बार तो शिवरात्रि सोमवार को है और जब शिवरात्रि सोमवार को हो तो उसका एक विशेष महत्व हमारे मन-मंदिर में छा जाता है | इस शिवरात्रि के पावन पर्व पर मेरी आप सब को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ हैं |
मेरे प्यारे देशवासियो, कुछ दिन पहले मैं काशी गया था | वहाँ मुझे दिव्यांग भाई-बहनों के साथ समय बिताने का मौका मिला | उनसे कई विषयों पर चर्चा हुई और उनका आत्मविश्वास वाकई प्रभावित करने वाला था - प्रेरक था | बातचीत के दौरान उनमें से एक प्रज्ञाचक्षु नौजवान से जब मैं बात कर रहा था तो उसने कहा मैं तो stage artist हूँ | मैं मनोरंजन के कार्यक्रमों में mimicry करता हूँ, तो मैंने ऐसे ही पूछ लिया आप किसकी  mimicry करते हो ? तो उसने बताया कि मैं प्रधानमंत्री की mimicry करता हूँ | तो मैंने उनसे कहा ज़रा कर के दिखाइये और मेरे लिए बड़ा सुखद आश्चर्य था, तो उन्होंने ‘मन की बात’ में जिस प्रकार से मैं बात करता हूँ  उसी की पूरी mimicry की, और ‘मन की बात’ की ही mimicry की | मुझे ये सुनकर बहुत अच्छा लगा कि लोग न सिर्फ ‘मन की बात’ सुनते हैं बल्कि उसे कई अवसरों पर याद भी करते हैं | मैं सचमुच में उस दिव्यांग नौजवान की शक्ति से बहुत ही प्रभावित हुआ |
मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से आप सब से जुड़ना मेरे लिए एक अनोखा अनुभव रहा है | रेडियो के माध्यम से मैं एक तरह से करोड़ों परिवारों से हर महीने रूबरू होता हूँ | कई बार तो आप सब से बात करते, आपकी चिठ्ठियाँ पढ़ते या आपके फोन पर भेजे गए विचार सुनते मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि आपने मुझे अपने परिवार का ही हिस्सा मान लिया है | यह मेरे लिए एक बहुत ही सुखद अनुभूति रही है |
दोस्तों, चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव होता है | अगले दो महीने, हम सभी चुनाव की गहमा-गहमी में व्यस्त होगें | मैं स्वयं भी इस चुनाव में एक प्रत्याशी रहूँगा | स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा का सम्मान करते हुए अगली ‘मन की बात’ मई महीने के आखरी रविवार को होगी | यानि कि मार्च महीना, अप्रैल महीना और पूरा मई महीना ये तीन महीने की सारी हमारी जो भावनाएँ हैं उन सबको मैं चुनाव के बाद एक नए विश्वास के साथ आपके आशीर्वाद की ताकत के साथ फिर एक बार ‘मन की बात’ के माध्यम से हमारी बातचीत के  सिलसिले का आरम्भ करूँगा और सालों तक आपसे ‘मन की बात’ करता रहूँगा | फिर एक बार आप सबका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूँ |  

Wednesday, 13 February 2019

Message by CEO Prasar Bharati Shashi Shekhar Vempati on World Radio Day



I am very happy to connect with all the listeners of All India Radio on World Radio day. World Radio Day is observed by UNESCO since year 2012. Last year the theme was on Radio and sports. This year, the theme is dialogue, tolerance and peace. I think it's a very interesting theme, coinciding with the 150th birth anniversary of Mahatma Gandhi. Gandhi ji always stood for peace, tolerance and dialogue. So in that sense, it's an interesting coincidence that UNESCO has also chosen this topic for World Radio Day.
Interestingly, Radio has evolved as a platform for people to connect across regions of India, across cultures, in a manner that you probably had not foreseen sometime back. A great example is the Prime Minister's Mann Ki Baat which has brought Radio back to the national discourse as a medium, especially in this day and age where smartphones have invaded almost every moment in our private space, where television viewing and the internet have dominated how media is consumed. Radio still has a value, very unique value and a unique place, thanks to the nature of this medium. So it is fitting that we are observing World Radio Day.
As we expand and transform Radio in India, I think it is important that we increasingly build out more and more digital capabilities, make radio accessible as a medium through devices of choice that are easily available to the masses across India. The fact that FM chipsets where embedded in Smartphones made FM listening very easily accessible, even if you are on the go, or working, or commuting. I think this was a very transformational change that has popularised FM as the medium of choice to listeners which is also reflected in our expansion plans of All India Radio, where you see increasingly more and more of our investment is going towards FM transmitters and FM stations. So that is possible largely because of this convergence that is happening on devices with smartphones capable of catching FM signals, but as we look ahead, I think when we launched All India Radio services on artificial intelligence enabled devices like Amazon Alexa, I think we have taken this transformation to the next level.
Historically, Radio has been a one way medium where you could just listen to what was being broadcast. Now with Amazon Alexa you can actually converse with the device, you can instruct it, you can command it and you can listen to the content of your choice on demand. I think it's a fundamental change in listening habits and I am very happy that All India Radio has prepared itself for this artificial intelligence enabled future. We will have to take this further by ensuring that all of our content, especially the content diversity that we have across languages, from various parts of India is easily accessible in these digital medium of choice, be it on smartphones, be it on intelligent devices like Google Home, Alexa and so on.
We also will have to ensure that we are digitally savvy and we are much more nimble in how we produce content, how we distribute content, how we package content by understanding the consumption behaviour of today's youth so that Radio as a medium appeals to them, Radio as a medium is something that they can identify with. India is a young nation, so clearly Radio must evolve as a platform of choice for the youth.
So these are my thoughts on World Radio Day and I hope and wish that Radio as a platform continues to enhance dialogue, encourage tolerance and becomes a means of establishing peace both within the nation and across the globe.

Message on World Radio Day by Director General, Akashvani Shri F. Sheheryar



World Radio Day, 2019

On behalf of All India Radio, India’s Public Service Broadcaster, I, F. Sheheryar extend my heartiest greetings to each and every member of the Radio fraternity across the globe, this World Radio Day, 2019.

This year’s theme, i.e. ‘Dialogue, Tolerance and Peace’ is a powerful phrase in itself, with implicit and explicit implications that pertain not just to India or the Asia-Pacific region, but to the entire world.  Understood in a deeper sense in letter and spirit, the term is a panacea for a world which seems to be ailing in certain key areas of human dignity and cohesion, more so for the last few decades.  India’s age old approach has been proactively proclaiming the essence of ‘Dialogue, Tolerance and Peace’ through tenets such as ‘Vasudhaiva Kutumbakam’ and through the teachings of Ramanujacharya, Kabir and Guru Nanak; in recent times of Mahatama Gandhi, whose 150th birth anniversary year is being observed worldwide.

The Radio sector, particularly Public Service Broadcasting finds itself in a flux today for a flurry of reasons … a major one being a transition in public psyche in terms of the ability to assess psycho-social impact.  Coupled with the glossy media’s overarching inclination towards the basal and the banal, lucratively so, this has gravitated general public tastes away from human substance, towards a glitter, most don’t even understand as a mirage.  This has led to the vicious cycle of an ever widening gap between informed awareness and consumption patterns.

World Radio Day celebrates technological achievements in the Radio sector, but at the same time it is a grim reminder that more needs to be done expeditiously for the benefit of the common human being and his basic needs, to begin with.  And this is where Public Service Broadcasters step in.  SDGs such as alleviation of poverty, health and wellbeing, quality education and gender equality, the basic pillars of the theme ‘Dialogue, Tolerance &  Peace’ are not marketing money-spinners and naturally will never be of much interest in Board rooms where profit charts are the sole raison d'être.  It is only the altruistic Public Service Broadcaster, of course, with adequate help from the respective government that can creatively intervene with its programming content.

All India Radio has had a long history of inclusive catering much on the lines of the coverage areas of SDGs.  Here, innovations in programming styles and techniques go hand in hand with preserving time-tested traditional broadcasting formats, just to ensure that the ‘not-so-smart’ ones are not left out mercilessly.  Besides poverty alleviation schemes of the government, individual and institutional attempts at the same are given due weightage in programming.  Public health and wellbeing have always been accorded top priority on the airwaves in a number of languages and dialects to enable access to the bottom of the pyramid.  AIR with its array of diverse programming and formats, is in itself an attempt by default at imparting quality education free of cost.  And there is definitely huge scope in furthering the cause of formal quality education on air, of course with much required support from the right quarters.

Similarly, spreading the message of gender equality and its impact on society has been a major thrust area for All India Radio, throughout its history.

This world Radio Day is a wonderful opportunity to join hands in introspecting if the world could be made a better place, and not just for a few.  There couldn’t have been a better opportunity to set the tone for the advent of Ritu Basant, the season of spring.  Once again, season’s greetings to all of you.










                  

Shri F. Sheheryar
Director General, All India Radio &
President, Asia-Pacific Institute for
Broadcasting Development (AIBD)

World Radio Day – 2019



A cursory glance at our social fabric today reveals a story that’s far from pleasant. What meets the eye is an increasingly alarming tendency to embrace one-upmanship, intolerance and conflict. And this malaise has assumed global proportions, fueled by a burgeoning population, disparity in distribution of resources and skewed revenue models adopted by multinational corporations, as they unleash their wares. Can a parallel be drawn between this phenomenon on the one hand and on the other, the systematic step-motherly treatment being meted out to the medium of Radio, especially Public Service Broadcasters of the world, subjecting them to the tyranny of market forces? A specialist may be able to place the analogy in chronological perspective.
Radio has played a crucial, stellar role over the past nine decades or so in shaping up our collective existence, so to say. Reams can be filled up on the role of radio during and after World War II, since it was a powerful medium for propaganda, as well as re-uniting efforts for the displaced ; it was a medium palatable even for the semi-literate. The plethora of programming formats that comprised the medium was able to cater to one and all, doing justice to its intended objective of informing, educating, and entertaining. 
All India Radio and its vast network is possibly one of the few broadcasting organisations of the world which still cater to audiences using time tested formats such as Talks, Interviews, News, Sports and non-sports Commentaries, Discussions, Drama, Features/Documentaries and Radio Magazines, ensuring last mile inclusivity with altruistic underpinnings.


Of course there are critics… and there should be. But those who have an increasing tendency of saying, “Times have changed!” seem to be oblivious of the fact that superficial facets of human beings may have undergone a sea of change over the decades, but internally our core value system remains pretty much the same, with virtues such as Dialogue, Tolerance and Peace closest to our hearts. Ask any family, you’ll get the answer. And it is only the world’s Public Service Broadcasters who have the pedigree and the wherewithal to re-propagate these virtues subtly into society, using creative ways.  World Radio Day is but a grim reminder to people and governments to set this powerful tool in order, before forces driven by ‘smart’ motives create points of no return.
It’s time to re-visit and re-create sounds of sanity, before it’s too late. For humanity.


By: Manoj Mainkar, Programme Executive, Central Hindi Features Unit, All India Radio

Wednesday, 6 February 2019

3-day 'Kisanvani Impact Assessment and Capacity Building' Workshop kicks off in Nagpur

The 3-day 'Kisanvani Impact Assessment and Capacity Building' Workshop was inaugurated today at Central Institute for Cotton Research (CICR), Nagpur by Shri R. J. Bhosale, (Divisional Joint Director of Agriculture, Nagpur Division, Govt. of Maharashtra.), Dr Vijay N. Waghmare, (Director, CICR, Nagpur) and Dr. Sudhir Kumar, (Joint Director, MoAFW).


The workshop is being attended by AIR #KisanVani programmers from Madhya Pradesh, Chhattisgarh, Maharashtra, Gujarat and Daman.



Various issues crucial for contemporary agriculture are being deliberated upon in this workshop in which various experts as well as progressive farmers from Vidarbh region are also participating.

Tuesday, 5 February 2019

A Safety Net for the Internet


                   

Once upon a time not so long ago, a web was what a spider wove, browsing meant leafing through a book and the mouse ran up the clock.



And abracadabra! With the wave of a magician’s wand, the internet was conjured up and everything was just a click away! The world was our oyster and we would live happily ever after.

Was this ‘The end’ of the fairy tale or a beginning? Was this a fairy tale at all?

Red Riding Hood could well tell us how the wolf is now a cyber stalker, a predator pretending to be a child on Instagram. Or Snapchat.

The internet has empowered people and nations and knitted the world together like nothing before. The same Internet is equally and powerfully capable of  ripping the world apart. Policy makers, tech giants and other stakeholders are now desperately seeking for a safety net or a safety switch to contain this mighty genie unleashed on us.

Which is why on the second day of the second week of the second month of the year, we observe Safer Internet Day with emphasis on safety for children and youngsters.




 Our focus must be on educating children and supporting parents in ensuring that their children grow up using technology in a safe way and in a smart way



Who should protect youngsters from online exploitation? Who should guide them towards smart use of the internet? Parents, schools, counsellors, online media companies, governments? Or all of them?

There is no magic switch or solution for what is a complex matter, made all the more  complex by the changing nature of technology and the internet, and for many parents this can be one of the biggest concerns – how to keep abreast of newer features and newer perils.

But the aim of all concerned has to be to empower children to enjoy all the positivity of the digital world, safely. One must remember that Red Riding Hood reached out to the friendly and proactive woodcutter for help. We need to people the child’s world with suitable woodcutters positioned at appropriate points.




   
By: Basudha Banerji