मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 3 अक्टूबर, 2014
विजयादशमी का पावन पर्व | ‘मन की बात’ के माध्यम से हम सबने
एक साथ, एक यात्रा का प्रारम्भ किया था | ‘मन की बात’, इस यात्रा
के आज 50 एपिसोड पूरे हो गए हैं | इस तरह आज ये Golden
Jubilee Episode स्वर्णिम एपिसोड है | इस बार आपके जो पत्र और
फ़ोन आये हैं, अधिकतर वे इस 50 एपिसोड के सन्दर्भ में ही हैं |
MyGov पर दिल्ली के अंशु कुमार, अमर कुमार और पटना से विकास
यादव, इसी तरह से NarendraModiApp पर दिल्ली की मोनिका जैन,
बर्दवान, West Bengal के प्रसेनजीत सरकार और नागपुर की संगीता
शास्त्री इन सब लोगों ने लगभग एक ही तरह का प्रश्न पूछा है |
उनका कहना है कि अक्सर लोग आपको latest technology, Social
Media और Mobile Apps के साथ जोड़ते हैं, लेकिन आपने लोगों के
साथ जुड़ने के लिये रेडियो को क्यों चुना ? आपकी ये जिज्ञासा बहुत
स्वाभाविक है कि आज के युग में, जबकि करीब रेडियो भुला दिया
गया था उस समय मोदी रेडियो लेकर के क्यों आया ? मैं आपको
एक किस्सा सुनाना चाहता हूँ | ये 1998 की बात है, मैं भारतीय
जनता पार्टी के संगठन के कार्यकर्ता के रूप में हिमाचल में काम
करता था | मई का महीना था और मैं शाम के समय travel करता
हुआ किसी और स्थान पर जा रहा था | हिमाचल की पहाड़ियों में
शाम को ठण्ड तो हो ही जाती है, तो रास्ते में एक ढाबे पर चाय के
लिये रुका और जब मैं चाय के लिए order किया तो उसके पहले, वो
बहुत छोटा सा ढाबा था, एक ही व्यक्ति खुद चाय बनाता था, बेचता
था | ऊपर कपड़ा भी नहीं था ऐसे ही road के किनारे पर छोटा सा
ठेला लगा के खड़ा था | तो उसने अपने पास एक शीशे का बर्तन था,
उसमें से लड्डू निकाला, पहले बोला – साहब, चाय बाद में, लड्डू
खाइए | मुँह मीठा कीजिये | मैं भी हैरान हो गया तो मैंने पूछा क्या
बात है कोई घर में कोई शादी-वादी कोई प्रसंग-वसंग है क्या ! उसने
कहा नहीं-नहीं भाईसाहब, आपको मालूम नहीं क्या ? अरे बहुत बड़ी
खुशी की बात है वो ऐसा उछल रहा था, ऐसा उमंग से भरा हुआ था,
तो मैंने कहा क्या हुआ ! अरे बोले आज भारत ने bomb फोड़ दिया है
| मैंने कहा भारत ने bomb फोड़ दिया है ! मैं कुछ समझा नहीं ! तो
उसने कहा - देखिये साहब, रेडियो सुनिये | तो रेडियो पर उसी की
चर्चा चल रही थी | तो उसने कहा उस समय हमारे प्रधानमंत्री अटल
बिहारी वाजपेयी ने - वो परमाणु परीक्षण का दिन था और मीडिया के
सामने आकर के घोषणा की थी और इसने ये घोषणा रेडियो पर सुनी
थी और नाच रहा था और मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि इस जंगल
के सुनसान इलाके में, बर्फीली पहाड़ियों के बीच, एक सामान्य इंसान
जो चाय का ठेला लेकर के अपना काम कर रहा है और दिन-भर
रेडियो सुनता रहता होगा और उस रेडियो की ख़बर का उसके मन पर
इतना असर था, इतना प्रभाव था और तब से मेरे मन में एक बात
घर कर गयी थी कि रेडियो जन-जन से जुड़ा हुआ है और रेडियो की
बहुत बड़ी ताकत है | communication की reach और उसकी गहराई,
शायद रेडियो की बराबरी कोई नहीं कर सकता ये मेरा उस समय से
मेरे मन में भरा पड़ा है और उसकी ताकत का मैं अंदाज करता था |
तो जब मैं प्रधानमंत्री बना तो सबसे ताकतवर माध्यम की तरफ़ मेरा
ध्यान जाना बहुत स्वाभाविक था | और जब मैंने मई 2014 में एक
‘प्रधान-सेवक’ के रूप में कार्यभार संभाला तो मेरे मन में इच्छा थी
कि देश की एकता, हमारे भव्य इतिहास, उसका शौर्य, भारत की
विविधताएँ, हमारी सांस्कृतिक विविधताएँ, हमारे समाज के रग-रग में
समायी हुई अच्छाइयाँ, लोगों का पुरुषार्थ, जज़्बा, त्याग, तपस्या इन
सारी बातों को, भारत की यह कहानी, जन-जन तक पहुँचनी चाहिये |
देश के दूर-सुदूर गावों से लेकर Metro Cities तक, किसानों से लेकर
के युवा professionals तक और बस उसी में से ये ‘मन की बात’ की
यात्रा प्रारंभ हो गयी | हर महीने लाखों की संख्या में पत्रों को पढ़ते,
phone calls सुनते, App और MyGov पर comment देखते और इन
सबको एक सूत्र में पिरोकर के, हल्की-फुल्की बातें करते-करते 50
episode की एक सफ़र, ये यात्रा हम सबने मिलकर के कर ली है |
हाल ही में आकाशवाणी ने ‘मन की बात’ पर survey भी कराया | मैंने
उनमें से कुछ ऐसे feedback को देखा जो काफी दिलचस्प हैं | जिन
लोगों के बीच survey किया गया है, उनमें से औसतन 70%
नियमित रूप से ‘मन की बात’ सुनने वाले लोग हैं | अधिकतर लोगों
को लगता है कि ‘मन की बात’ का सबसे बड़ा योगदान ये है कि
इसने समाज में positivity की भावना बढ़ायी है | ‘मन की बात’ के
माध्यम से बड़े पैमाने पर जन-आन्दोलनों को बढ़ावा मिला है |
#indiapositive को लेकर व्यापक चर्चा भी हुई है | ये हमारे देशवासियों
के मन में बसी positivity की भावना की, सकारात्मकता की भावना
की भी झलक है | लोगों ने अपना ये अनुभव भी share किया है कि
‘मन की बात’ से volunteerism यानी स्वेच्छा से कुछ करने की भावना
बढ़ी है | एक ऐसा बदलाव आया है जिसमें समाज की सेवा के लिए
लोग बढ़ चढ़ करके आगे आ रहे हैं | मुझे यह देखकर के खुशी हुई
कि ‘मन की बात’ के कारण रेडियो, और अधिक लोकप्रिय हो रहा है |
लेकिन यह केवल रेडियो ही नहीं है जिसके माध्यम से लोग इस
कार्यक्रम में जुड़ रहे हैं | लोग टी.वी., एफ़.एम. रेडियो, मोबाइल,
इन्टरनेट, फ़ेसबुक लाइव, और periscope के साथ-साथ
NarendraModiApp के माध्यम से भी ‘मन की बात’ में अपनी
भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं | मैं ‘मन की बात’ परिवार के आप
सभी सदस्यों को इस पर विश्वास जताने और इसका हिस्सा बनने के
लिये अंतःकरणपूर्वक धन्यवाद देता हूँ |
(फ़ोन कॉल-1)
“आदरणीय प्रधानमंत्री जी, नमस्ते ! मेरा नाम शालिनी है और
मैं हैदराबाद से बोल रही हूँ | ‘मन की बात’ कार्यक्रम जनता के बीच
एक बहुत ही लोकप्रिय कार्यक्रम है | प्रारम्भ में लोगों ने सोचा कि
यह कार्यक्रम भी एक राजनीतिक मंच बनकर ही रह जाएगा और
आलोचना का विषय भी बना | परन्तु जैसे-जैसे ये कार्यक्रम आगे बढ़ा
हमने देखा कि राजनीति के स्थान पर, यह सामाजिक समस्याओं और
चुनौतियों पर ही केन्द्रित रहा और इस तरह मेरे जैसे करोड़ों सामान्य
लोगों से जुड़ता गया | धीमे-धीमे आलोचना भी समाप्त हो गयी | तो
मेरा प्रश्न यह है कि आप इस कार्यक्रम को किस प्रकार राजनीति से
दूर रखने में सफल रहे | क्या कभी आपका ऐसा मन नहीं हुआ कि
आप इस कार्यक्रम को राजनीति के लिये उपयोग कर सकें या फिर
इस मंच से अपनी सरकार की उपलब्धियाँ गिना सकें ? धन्यवाद |”
(फ़ोन कॉल समाप्त)
आपके फ़ोन-कॉल के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद | आपकी आशंका
सही है | दरअसल नेता को mike मिल जाए और लाखों-करोड़ों की
संख्या में सुनने वाले हों, तो फिर क्या चाहिये ? कुछ युवा मित्रों ने
‘मन की बात’ में आए सब विषयों पर एक study की | उन्होंने सारे
episode का lexical analysis किया और उन्होंने अध्ययन किया कि
कौन से शब्द कितनी बार बोले गए ? कौन से शब्द हैं जो बार-बार
बोले गए ? उनकी एक finding यही है कि यह कार्यक्रम apolitical रहा
| जब ‘मन की बात’ शुरू किया था तभी मैंने तय किया था कि न
इसमें politics हो, न इसमें सरकार की वाह-वाही हो, न इसमें कहीं
मोदी हो और मेरे इस संकल्प को निभाने के लिये सबसे बड़ा संबल,
सबसे बड़ी प्रेरणा मिली आप सबसे | हर ‘मन की बात’ से पहले आने
वाले पत्रों, online comments, phone calls इनमें श्रोताओं की अपेक्षाएँ
साफ़ होती हैं | मोदी आएगा और चला जाएगा, लेकिन यह देश अटल
रहेगा, हमारी संस्कृति अमर रहेगी | 130 करोड़ देशवासियों की छोटी-
छोटी यह कहानियाँ हमेशा जीवित रहेंगी | इस देश को नयी प्रेरणा में
उत्साह से नयी ऊंचाइयों पर लेती जाती रहेंगी | मैं भी कभी-कभी
पीछे मुड़कर के देखता हूँ तो मुझे भी बहुत बड़ा आश्चर्य होता है |
कभी कोई देश के किसी कोने से पत्र लिखकर कहता है - हमें छोटे
दुकानदारों, auto चलाने वालों, सब्जी बेचने वालों ऐसे लोगों से बहुत
ज़्यादा मोल-भाव नहीं करना चाहिये | मैं पत्र पढता हूँ, ऐसा ही भाव
कभी किसी और पत्र में आया हो उसको साथ गूँथ लेता हूँ | दो बातें
मैं अपने अनुभव की भी उसके साथ share कर लेता हूँ, आप सबके
साथ बाँट लेता हूँ और फिर न जाने कब यह बात घर-परिवारों में
पहुँचती है, social media और WhatsApp पर घूमती है और एक
परिवर्तन की ओर बढ़ती रहती है | आपकी भेजी स्वच्छता की
कहानियों ने, सामान्य लोगों के ढ़ेर सारे उदाहरणों ने, न जाने कब
घर-घर में एक नन्हा स्वच्छता का brand Ambassador खड़ा कर दिया
है, जो घरवालों को भी टोकता है और कभी-कभी phone call कर
प्रधानमंत्री को भी आदेश देता है | कब किसी सरकार की इतनी
ताक़त होगी कि selfiewithdaughter की मुहिम हरियाणा के एक छोटे
से गाँव से शुरू होकर पूरे देश में ही नहीं, विदेशों में भी फैल जाए |
समाज का हर वर्ग, celebrities सब जुड़ जाएँ और समाज में सोच-
परिवर्तन की एक नयी modern language में, जिसे आज की पीढ़ी
समझती हो ऐसी अलख जगा जाये | कभी-कभी ‘मन की बात’ का
मजाक भी उड़ता है लेकिन मेरे मन में हमेशा ही 130 करोड़ देशवासी
बसे रहते हैं | उनका मन मेरा मन है | ‘मन की बात’ सरकारी बात
नहीं है - यह समाज की बात है | ‘मन की बात’ एक aspirational
India, महत्वाकांक्षी भारत की बात है | भारत का मूल-प्राण राजनीति
नहीं है, भारत का मूल-प्राण राजशक्ति भी नहीं है | भारत का मूल-
प्राण समाजनीति है और समाज-शक्ति है | समाज जीवन के हजारों
पहलू होते हैं उनमें से एक पहलू राजनीति भी है | राजनीति सबकुछ
हो जाए, यह स्वस्थ समाज के लिए एक अच्छी व्यवस्था नहीं है |
कभी-कभी राजनीतिक घटनाएँ और राजनीतिक लोग, इतने हावी हो
जाते हैं कि समाज की अन्य प्रतिभाएँ और अन्य पुरुषार्थ दब जाते हैं
| भारत जैसे देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए जन-सामान्य की
प्रतिभाएँ पुरुषार्थ को उचित स्थान मिले, यह हम सबका एक सामूहिक
दायित्व है और ‘मन की बात’ इस दिशा में एक नम्र और छोटा सा
प्रयास है |
(फ़ोन कॉल–2)
“नमस्ते प्रधानमंत्री जी ! मैं प्रोमिता मुखर्जी बोल रही हूँ मुंबई
से | सर ‘मन की बात’ का हर episode गहरी insight से, जानकारी
information से, positive stories से और आम आदमी के अच्छे कामों
से भरा हुआ होता है | तो मैं आपसे पूछना चाहती हूँ कि हर
programme से पहले आप कितना prepare करते हैं ?”
(फोन कॉल समाप्त)
फ़ोन कॉल के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद ! आपका
सवाल एक प्रकार से अपनेपन से पूछा सवाल है | मैं मानता हूँ ‘मन
की बात’ के 50 episode की सबसे बड़ी सिद्धि यही है कि आप
प्रधानमंत्री से नहीं, जैसे अपने एक निकट साथी से सवाल पूछ रहे हैं |
बस, यही तो लोकतंत्र है | आपने जो सवाल पूछा है अगर मैं सीधे
शब्दों में उत्तर दूँ तो कहूँगा - कुछ भी नहीं | actually ‘मन की बात’
मेरे लिए बहुत ही आसान काम है | हर बार ‘मन की बात’ से पहले
लोगों के पत्र आते हैं | Mygov और Narendra Modi Mobile App पर
लोग अपने विचार share करते हैं | एक Toll Free Number भी है –
1800117800 वहाँ कॉल करके लोग अपने सन्देश अपनी आवाज़ में
record भी करते हैं | मेरी कोशिश रहती है कि ‘मन की बात’ से पहले
ज्यादा से ज्यादा पत्र और comments खुद पढूँ | मैं काफी सारे फ़ोन
कॉल भी सुनता हूँ | जैसे-जैसे ‘मन की बात’ का episode करीब आता
है तो travelling के दौरान, आपके द्वारा भेजे गए ideas और inputs
को मैं बहुत बारीकी से पढ़ता हूँ |
हर पल मेरे देशवासी, मेरे मन में रचे बसे होते हैं और इसलिए
जब भी कोई पत्र पढ़ता हूँ तो पत्र लिखने वाले की परिस्थिति, उसके
भाव, मेरे विचार का हिस्सा बन जाते हैं | वो पत्र मेरे लिए सिर्फ एक
कागज़ का टुकड़ा नहीं रहता है और वैसे ही मैंने करीब 40-45 साल
अखंड रूप से एक परिव्राजक का जीवन जीया है और देश के
अधिकतर जिलों में गया हूँ और देश के दूर-दराज जिलों में मैंने काफी
समय भी बिताया है | और, इसके कारण जब मैं पत्र पढ़ता हूँ तो मैं
उस स्थान और सन्दर्भ से आसानी से अपने आप को relate कर
पाता हूँ | फिर मैं, कुछ factual चीज़ों को जैसे गाँव, व्यक्ति का नाम
उन चीज़ों को नोट कर लेता हूँ | सच पूछो तो “मन की बात” में
आवाज़ मेरी है, लेकिन examples, emotions और spirit मेरे देशवासियों
के ही हैं | मैं ‘मन की बात’ में योगदान देने वाले प्रत्येक व्यक्ति को
धन्यवाद देना चाहता हूँ | ऐसे लाखों लोग हैं जिनका नाम मैं आज
तक ‘मन की बात’ में नहीं ले पाया, लेकिन वो बिना निराश हुए
अपने पत्र, अपने comments भेजते हैं - आपके विचार, आपकी
भावनाएं मेरे जीवन में बहुत ही महत्व रखती हैं | मुझे पूरा विश्वास
है कि आप सभी की बातें पहले से कई गुना ज़्यादा मुझे मिलेंगी और
‘मन की बात’ को, और रोचक और प्रभावी और उपयोगी बनाएगी |
यह भी कोशिश की जाती है कि जो पत्र ‘मन की बात’ में शामिल
नहीं हुए उन पत्रों और सुझावों पर सम्बंधित विभाग भी ध्यान दें | मैं
आकाशवाणी, एफ़.एम. रेडियो, दूरदर्शन, अन्य T.V. channels, social
media के मेरे साथियों को भी धन्यवाद देना चाहता हूँ | उनके परिश्रम
से ‘मन की बात’ ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का तक पहुँच पाती है |
आकाशवाणी की टीम हर episode को बहुत सारी भाषाओं में प्रसारण
के लिए तैयार करती है | कुछ लोग बखूबी regional languages में
मोदी से मिलती-जुलती आवाज़ में और उसी लहज़े से ‘मन की बात’
सुनाते हैं | इस तरह से वे उस 30 minutes के लिए नरेन्द्र मोदी ही
बन जाते हैं | मैं उन लोगों को भी उनके talent और skills के लिए
बधाई देता हूँ, धन्यवाद देता हूँ | मैं आप सबसे भी यह आग्रह करूँगा
कि इस कार्यक्रम को अपनी स्थानीय भाषाओं में भी अवश्य सुनें | मैं
media के अपने उन साथियों को हृदयपूर्वक धन्यवाद देना चाहता हूँ
जो अपने channels पर ‘मन की बात’ का हर बार नियमित रूप से
प्रसारण करते हैं | कोई भी राजनैतिक व्यक्ति media से कभी भी
खुश नहीं होता है, उसे लगता है उसे बहुत कम coverage मिलता है
या जो coverage मिलता है वो negative होता है लेकिन ‘मन की
बात’ में उठाए गए कई विषयों को media ने अपना बना लिया है |
स्वच्छता, सड़क सुरक्षा, drugs free India, selfie with daughter जैसे
कई विषय हैं जिन्हें media ने innovative तरीके से एक अभियान का
रूप देकर आगे बढ़ाने का काम किया | T.V. channels ने इसको most
watched radio programme बना दिया | मैं media का हृदय से
अभिनन्दन करता हूँ | आपके सहयोग के बिना ‘मन की बात’ की यह
यात्रा अधूरी ही रहती |
(फ़ोन कॉल –3)
“नमस्ते मोदी जी ! मैं निधि बहुगुणा बोल रही हूँ मसूरी
उत्तराखण्ड से | मैं दो युवा बच्चों की माँ हूँ | मैंने अक्सर यह देखा है
कि इस उम्र के बच्चे यह पसंद नहीं करते कि उन्हें कोई बताए कि
उन्हें क्या करना है ? चाहे वे teachers हों या वे उनके माता-पिता हों
| पर जब आपके ‘मन की बात’ होती है और आप बच्चों से कुछ
कहते हैं तो वे दिल से समझते हैं और उस बात को करते भी हैं - तो
आप हमसे इस secret को share करेंगे क्या ? क्या जिस तरह से आप
बोलते हैं या जो आप issue उठाते हैं कि वे बच्चे अच्छी तरह समझ
के implement करते हैं | धन्यवाद |” (फ़ोन कॉल समाप्त)
निधि जी, आपके फ़ोन कॉल के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद |
दरअसल मैं कहूँ तो मेरे पास तो कोई secret नहीं है | जो मैं कर रहा
हूँ वो सब परिवारों में भी होता भी होगा | सरल भाषा में कहूँ तो मैं
अपने आप को, उस युवा के अन्दर ढाल लेने का प्रयास करता हूँ, खुद
को उसकी परिस्थितियों में रखकर उसके विचारों के साथ एक
सामंजस्य बैठाने, एक wave length match करने की कोशिश करता हूँ
| हमारे ख़ुद के ज़िंदगी के वो पुराने baggages हैं, जब वो बीच में नहीं
आते हैं तो किसी को समझना आसान हो जाता है | कभी-कभी हमारे
पूर्वाग्रह ही संवाद के लिए सबसे बड़ा संकट बन जाते हैं | स्वीकार-
अस्वीकार और प्रतिक्रियाओं की बजाय किसी की बात को समझना
मेरी प्राथमिकता रहती है | मेरा अनुभव रहा है कि ऐसे में सामने
वाला भी हमें convince करने के लिए भांति-भांति के तर्क या दबाव
बनाने की बजाय हमारी wavelength पर आने का प्रयास करता है |
इसीलिए communication gap खत्म हो जाता है फिर एक प्रकार से
उस विचार के साथ हम दोनों सहयात्री बन जाते हैं | दोनों में से पता
ही नहीं चलता है कि कब और कैसे एक ने अपना विचार छोड़कर
दूसरे का स्वीकार कर लिया है - own कर लिया है | आज के युवाओं
की यही खूबी है कि वो ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे जिस पर स्वयं उन्हें
विश्वास नहीं हो और जब वो किसी चीज़ पर विश्वास करते हैं तो
फिर उसके लिए सब कुछ छोड़-छाड़ कर उसके पीछे लग जाते हैं |
अक्सर लोग परिवारों में बड़ों और teenagers के बीच communication
gap की चर्चा करते हैं | दरअसल अधिकतर परिवारों में teenagers से
बातचीत का दायरा बड़ा सीमित होता है | अधिकतर समय पढ़ाई की
बातें या फिर आदतों और फिर lifestyle को लेकर ‘ऐसा कर – ऐसा
मत कर’ बिना किसी अपेक्षा के खुले मन से बातें, धीरे-धीरे परिवार
में भी बहुत कम होती जा रही है और यह भी चिंता का विषय है |
Expect की बजाय accept और dismiss करने की बजाय discuss
करने से संवाद प्रभावी बनेगा | अलग-अलग कार्यक्रमों या फिर Social
Media के माध्यम से युवाओं के साथ लगातार बातचीत करने का
मेरा प्रयास रहता है | वे जो कर रहे हैं या क्या सोच रहे हैं - उससे
सीखने का मैं हमेशा प्रयास करता रहता हूँ | उनके पास हमेशा ideas
का भण्डार होता है | वे अत्यधिक energetic, innovative और
focussed होते हैं | ‘मन की बात’ के माध्यम से मैं युवाओं के प्रयासों
को, उनकी बातों को, ज्यादा से ज्यादा साझा करने का प्रयास करता
हूँ | अक्सर शिकायत होती है कि युवा बहुत ही अधिक सवाल करते
हैं | मैं कहता हूँ कि अच्छा है कि नौजवान सवाल करते हैं | ये
अच्छी बात इसलिए है क्योंकि इसका अर्थ हुआ कि वे सभी चीज़ों की
जड़ से छानबीन करना चाहते हैं | कुछ लोग कहते हैं कि युवाओं में
धैर्य नहीं होता, लेकिन मेरा मानना है कि युवाओं के पास बर्बाद करने
के लिए समय नहीं है | यही वो चीज़ है जो आज के नौजवानों को
अधिक innovative बनने में मदद करती है, क्योंकि, वे चीज़ों को
तेज़ी से करना चाहते हैं | हमें लगता है आज के युवा बहुत
महत्वाकांक्षी हैं और बहुत बड़ी-बड़ी चीज़ें सोचते हैं | अच्छा है, बड़े
सपने देखें और बड़ी सफलताओं को हासिल करें - आखिर, यही तो
New India है | कुछ लोग कहते हैं कि युवा पीढ़ी एक ही समय में
कई चीज़ें करना चाहती है | मैं कहता हूँ - इसमें बुराई क्या है ? वे
multitasking में पारंगत हैं इसलिए ऐसा करते हैं | अगर हम आस-
पास नज़र दौड़ायें तो वो चाहे Social Entrepreneurship हो, Start-
Ups हो, Sports हो या फिर अन्य क्षेत्र - समाज में बड़ा बदलाव लाने
वाले युवा ही हैं | वे युवा, जिन्होंने सवाल पूछने और बड़े सपने देखने
का साहस दिखाया | अगर हम युवाओं के विचारों को धरातल पर
उतार दें और उन्हें अभिव्यक्त करने के लिए खुला वातावरण दें तो वे
देश में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं | वे ऐसा कर भी रहे हैं |
मेरे प्यारे देशवासियो, गुरुग्राम से विनीता जी ने MyGov पर
लिखा है कि ‘मन की बात’ में मुझे कल यानी 26 नवम्बर को आने
वाले ‘संविधान दिवस’ के बारे में बात करनी चाहिए | उनका कहना है,
यह दिन विशेष है क्योंकि हम संविधान को अपनाने के 70वें वर्ष में
प्रवेश करने वाले हैं |
विनीता जी, आपके सुझाव के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद|
हाँ, कल ‘संविधान दिवस’ है | उन महान विभूतियों को याद
करने का दिन जिन्होंने हमारा संविधान बनाया | 26 नवम्बर, 1949
को हमारे संविधान को अपनाया गया था | संविधान draft करने के
इस ऐतिहासिक कार्य को पूरा करने में संविधान सभा को 2 वर्ष, 11
महीने और 17 दिन लगे | कल्पना कीजिये 3 वर्ष के भीतर ही इन
महान विभूतियों ने हमें इतना व्यापक और विस्तृत संविधान दिया |
इन्होंने जिस असाधारण गति से संविधान का निर्माण किया वो आज
भी time management और productivity का एक उदाहरण है | ये
हमें भी अपने दायित्वों को record समय में पूरा करने के लिए प्रेरित
करता है | संविधान सभा देश की महान प्रतिभाओं का संगम थी,
उनमें से हर कोई अपने देश को एक ऐसा संविधान देने के लिए
प्रतिबद्ध था जिससे भारत के लोग सशक्त हों, ग़रीब से ग़रीब
व्यक्ति भी समर्थ बने |
हमारे संविधान में खास बात यही है कि अधिकार और कर्तव्य
यानी Rights and Duties, इसके बारे में विस्तार से वर्णन किया गया
है | नागरिक के जीवन में इन्हीं दोनों का तालमेल देश को आगे ले
जाएगा | अगर हम दूसरों के अधिकार का सम्मान करेंगे तो हमारे
अधिकारों की रक्षा अपने आप हो जायेगी और इसी तरह अगर हम
संविधान में दिए अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे तो भी हमारे
अधिकारों की रक्षा अपने आप हो जायेगी | मुझे अभी भी याद है
2010 में जब भारत के गणतंत्र को 60 साल हुए थे तब गुजरात में
हमने हाथी पर रख कर संविधान की शोभा-यात्रा निकाली थी | युवाओं
में संविधान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए और उन्हें संविधान
के पहलुओं से जोड़ने के लिए ये एक यादगार प्रसंग था | वर्ष 2020
में एक गणतंत्र के रूप में हम 70 साल पूरे करेंगे और 2022 में
हमारी आज़ादी के 75 वर्ष पूरे हो जायेंगे |
आइये, हम सभी अपने संविधान के मूल्यों को आगे बढ़ाएँ और
अपने देश में Peace, Progression, Prosperity यानी शांति, उन्नति
और समृद्धि को सुनिश्चित करें |
मेरे प्यारे देशवासियो, संविधान सभा के बारे में बात करते हुए
उस महापुरुष का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता जो संविधान
सभा के केंद्र में रहे | ये महापुरुष थे पूजनीय डॉ. बाबा साहेब
अम्बेडकर | 6 दिसम्बर को उनका महा-परिनिर्वाण दिवस है | मैं सभी
देशवासियों की ओर से बाबा साहब को नमन् करता हूँ जिन्होंने करोड़ों
भारतीयों को सम्मान से जीने का अधिकार दिया | लोकतंत्र बाबा
साहब के स्वभाव में रचा-बसा था और वो कहते थे कि भारत के
लोकतांत्रिक मूल्य कहीं बाहर से नहीं आए हैं | गणतंत्र क्या होता है
और संसदीय व्यवस्था क्या होती है - ये भारत के लिए कोई नई बात
नहीं है | संविधान सभा में उन्होंने एक बहुत भावुक अपील की थी कि
इतने संघर्ष के बाद मिली स्वतंत्रता की रक्षा हमें अपने खून की
आखिरी बूँद तक करनी है | वे यह भी कहते थे कि हम भारतीय भले
ही अलग-अलग background के हों लेकिन हमें सभी चीज़ों से ऊपर
देशहित को रखना होगा | India First - डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर का
यही मूलमंत्र था | एक बार फिर पूज्य बाबा साहब को विनम्र
श्रद्धांजलि |
मेरे प्यारे देशवासियो, दो दिन पहले 23 नवम्बर को हम सबने
श्री गुरु नानक देव जी की जयंती मनाई है और अगले वर्ष यानी
2019 में हम उनका 550वाँ प्रकाश-पर्व मनाने जा रहे हैं | गुरु नानक
देव जी ने सदा ही पूरी मानवता के कल्याण के लिए सोचा | उन्होंने
समाज को हमेशा सत्य, कर्म, सेवा, करुणा और सौहार्द का मार्ग
दिखाया | देश अगले वर्ष गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती
समारोह को भव्य रूप से मनायेगा | इसका रंग देश ही नहीं, दुनिया-
भर में बिखरेगा | सभी राज्य सरकारों और केन्द्रीय शासित प्रदेशों से
भी इस अवसर को धूमधाम से मनाने का अनुरोध किया गया है |
इसी प्रकार गुरु नानक देव जी का 550वाँ प्रकाश पर्व विश्व के सभी
देशों में भी मनाया जाएगा | इसके साथ ही गुरु नानक जी से जुड़े
पवित्र स्थलों के मार्ग पर एक ट्रेन भी चलाई जायेगी | अभी हाल ही
में जब मैं इससे जुड़ी मीटिंग कर रहा था तो उसी समय मुझे लखपत
साहिब गुरुद्वारा की याद आई | गुजरात के 2001 के भूकंप के दौरान
उस गुरूद्वारे को भारी नुकसान पहुँचा था, लेकिन, जिस प्रकार
स्थानीय लोगों के साथ मिलकर राज्य सरकार ने उसका जीर्णोद्धार
कराया वो आज भी एक मिसाल है |
भारत सरकार ने एक बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय किया है कि
करतारपुर corridor बनाने का ताकि हमारे देश के यात्री आसानी से
पाकिस्तान में, करतारपुर में गुरु नानक देव जी के उस पवित्र स्थल
पर दर्शन कर सकें |
मेरे प्यारे देशवासियो, 50 episode के बाद हम फिर एक बार
मिलेंगे अगले ‘मन की बात’ में और मुझे विश्वास है कि आज ‘मन
की बात’ के इस कार्यक्रम के पीछे की भावनाओं को मुझे पहली बार
आपके समक्ष कहने का मौका मिला क्योंकि आप लोगों ने ऐसे ही
सवाल पूछे लेकिन हमारी यात्रा जारी रहेगी | आपका साथ जितना
ज्यादा जुड़ेगा, उतनी यात्रा हमारी और गहरी होगी और हर किसी को
संतोष देनेवाली मिलेगी | कभी-कभी लोगों के मन में सवाल उठता है
कि ‘मन की बात’ से मुझे क्या मिला ? मैं आज कहना चाहूँगा कि
‘मन की बात’ के जो feedback आते हैं, उसमें एक बात जो मेरे मन
को बहुत छू जाती है | अधिकतम लोगों ने ये कहा कि जब हम
परिवार के सब लोगों के साथ बैठकर के ‘मन की बात’ सुनते हैं तो
ऐसे लगता है कि हमारे परिवार का मुखिया हमारे बीच में बैठ करके
हमारी अपनी ही बातों को हमारे साथ share कर रहा है | जब ये बात
मैंने व्यापक रूप से सुनी मुझे बहुत संतोष हुआ कि मैं आपका हूँ,
आप में से ही हूँ, आपके बीच हूँ, आप ही ने मुझे बड़ा बनाया है और
एक प्रकार से मैं भी आपके परिवार के सदस्य के रूप में ही ‘मन की
बात’ के माध्यम से बार-बार आता रहूँगा, आपसे जुड़ता रहूँगा |
आपके सुख-दुःख, मेरे सुख-दुःख | आपकी आकांक्षा, मेरी आकांक्षा |
आपकी महत्वाकांक्षा, मेरी महत्वाकांक्षा |
आइये, इस यात्रा को हम और आगे बढ़ाएँ |
बहुत-बहुत धन्यवाद |
विजयादशमी का पावन पर्व | ‘मन की बात’ के माध्यम से हम सबने
एक साथ, एक यात्रा का प्रारम्भ किया था | ‘मन की बात’, इस यात्रा
के आज 50 एपिसोड पूरे हो गए हैं | इस तरह आज ये Golden
Jubilee Episode स्वर्णिम एपिसोड है | इस बार आपके जो पत्र और
फ़ोन आये हैं, अधिकतर वे इस 50 एपिसोड के सन्दर्भ में ही हैं |
MyGov पर दिल्ली के अंशु कुमार, अमर कुमार और पटना से विकास
यादव, इसी तरह से NarendraModiApp पर दिल्ली की मोनिका जैन,
बर्दवान, West Bengal के प्रसेनजीत सरकार और नागपुर की संगीता
शास्त्री इन सब लोगों ने लगभग एक ही तरह का प्रश्न पूछा है |
उनका कहना है कि अक्सर लोग आपको latest technology, Social
Media और Mobile Apps के साथ जोड़ते हैं, लेकिन आपने लोगों के
साथ जुड़ने के लिये रेडियो को क्यों चुना ? आपकी ये जिज्ञासा बहुत
स्वाभाविक है कि आज के युग में, जबकि करीब रेडियो भुला दिया
गया था उस समय मोदी रेडियो लेकर के क्यों आया ? मैं आपको
एक किस्सा सुनाना चाहता हूँ | ये 1998 की बात है, मैं भारतीय
जनता पार्टी के संगठन के कार्यकर्ता के रूप में हिमाचल में काम
करता था | मई का महीना था और मैं शाम के समय travel करता
हुआ किसी और स्थान पर जा रहा था | हिमाचल की पहाड़ियों में
शाम को ठण्ड तो हो ही जाती है, तो रास्ते में एक ढाबे पर चाय के
लिये रुका और जब मैं चाय के लिए order किया तो उसके पहले, वो
बहुत छोटा सा ढाबा था, एक ही व्यक्ति खुद चाय बनाता था, बेचता
था | ऊपर कपड़ा भी नहीं था ऐसे ही road के किनारे पर छोटा सा
ठेला लगा के खड़ा था | तो उसने अपने पास एक शीशे का बर्तन था,
उसमें से लड्डू निकाला, पहले बोला – साहब, चाय बाद में, लड्डू
खाइए | मुँह मीठा कीजिये | मैं भी हैरान हो गया तो मैंने पूछा क्या
बात है कोई घर में कोई शादी-वादी कोई प्रसंग-वसंग है क्या ! उसने
कहा नहीं-नहीं भाईसाहब, आपको मालूम नहीं क्या ? अरे बहुत बड़ी
खुशी की बात है वो ऐसा उछल रहा था, ऐसा उमंग से भरा हुआ था,
तो मैंने कहा क्या हुआ ! अरे बोले आज भारत ने bomb फोड़ दिया है
| मैंने कहा भारत ने bomb फोड़ दिया है ! मैं कुछ समझा नहीं ! तो
उसने कहा - देखिये साहब, रेडियो सुनिये | तो रेडियो पर उसी की
चर्चा चल रही थी | तो उसने कहा उस समय हमारे प्रधानमंत्री अटल
बिहारी वाजपेयी ने - वो परमाणु परीक्षण का दिन था और मीडिया के
सामने आकर के घोषणा की थी और इसने ये घोषणा रेडियो पर सुनी
थी और नाच रहा था और मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि इस जंगल
के सुनसान इलाके में, बर्फीली पहाड़ियों के बीच, एक सामान्य इंसान
जो चाय का ठेला लेकर के अपना काम कर रहा है और दिन-भर
रेडियो सुनता रहता होगा और उस रेडियो की ख़बर का उसके मन पर
इतना असर था, इतना प्रभाव था और तब से मेरे मन में एक बात
घर कर गयी थी कि रेडियो जन-जन से जुड़ा हुआ है और रेडियो की
बहुत बड़ी ताकत है | communication की reach और उसकी गहराई,
शायद रेडियो की बराबरी कोई नहीं कर सकता ये मेरा उस समय से
मेरे मन में भरा पड़ा है और उसकी ताकत का मैं अंदाज करता था |
तो जब मैं प्रधानमंत्री बना तो सबसे ताकतवर माध्यम की तरफ़ मेरा
ध्यान जाना बहुत स्वाभाविक था | और जब मैंने मई 2014 में एक
‘प्रधान-सेवक’ के रूप में कार्यभार संभाला तो मेरे मन में इच्छा थी
कि देश की एकता, हमारे भव्य इतिहास, उसका शौर्य, भारत की
विविधताएँ, हमारी सांस्कृतिक विविधताएँ, हमारे समाज के रग-रग में
समायी हुई अच्छाइयाँ, लोगों का पुरुषार्थ, जज़्बा, त्याग, तपस्या इन
सारी बातों को, भारत की यह कहानी, जन-जन तक पहुँचनी चाहिये |
देश के दूर-सुदूर गावों से लेकर Metro Cities तक, किसानों से लेकर
के युवा professionals तक और बस उसी में से ये ‘मन की बात’ की
यात्रा प्रारंभ हो गयी | हर महीने लाखों की संख्या में पत्रों को पढ़ते,
phone calls सुनते, App और MyGov पर comment देखते और इन
सबको एक सूत्र में पिरोकर के, हल्की-फुल्की बातें करते-करते 50
episode की एक सफ़र, ये यात्रा हम सबने मिलकर के कर ली है |
हाल ही में आकाशवाणी ने ‘मन की बात’ पर survey भी कराया | मैंने
उनमें से कुछ ऐसे feedback को देखा जो काफी दिलचस्प हैं | जिन
लोगों के बीच survey किया गया है, उनमें से औसतन 70%
नियमित रूप से ‘मन की बात’ सुनने वाले लोग हैं | अधिकतर लोगों
को लगता है कि ‘मन की बात’ का सबसे बड़ा योगदान ये है कि
इसने समाज में positivity की भावना बढ़ायी है | ‘मन की बात’ के
माध्यम से बड़े पैमाने पर जन-आन्दोलनों को बढ़ावा मिला है |
#indiapositive को लेकर व्यापक चर्चा भी हुई है | ये हमारे देशवासियों
के मन में बसी positivity की भावना की, सकारात्मकता की भावना
की भी झलक है | लोगों ने अपना ये अनुभव भी share किया है कि
‘मन की बात’ से volunteerism यानी स्वेच्छा से कुछ करने की भावना
बढ़ी है | एक ऐसा बदलाव आया है जिसमें समाज की सेवा के लिए
लोग बढ़ चढ़ करके आगे आ रहे हैं | मुझे यह देखकर के खुशी हुई
कि ‘मन की बात’ के कारण रेडियो, और अधिक लोकप्रिय हो रहा है |
लेकिन यह केवल रेडियो ही नहीं है जिसके माध्यम से लोग इस
कार्यक्रम में जुड़ रहे हैं | लोग टी.वी., एफ़.एम. रेडियो, मोबाइल,
इन्टरनेट, फ़ेसबुक लाइव, और periscope के साथ-साथ
NarendraModiApp के माध्यम से भी ‘मन की बात’ में अपनी
भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं | मैं ‘मन की बात’ परिवार के आप
सभी सदस्यों को इस पर विश्वास जताने और इसका हिस्सा बनने के
लिये अंतःकरणपूर्वक धन्यवाद देता हूँ |
(फ़ोन कॉल-1)
“आदरणीय प्रधानमंत्री जी, नमस्ते ! मेरा नाम शालिनी है और
मैं हैदराबाद से बोल रही हूँ | ‘मन की बात’ कार्यक्रम जनता के बीच
एक बहुत ही लोकप्रिय कार्यक्रम है | प्रारम्भ में लोगों ने सोचा कि
यह कार्यक्रम भी एक राजनीतिक मंच बनकर ही रह जाएगा और
आलोचना का विषय भी बना | परन्तु जैसे-जैसे ये कार्यक्रम आगे बढ़ा
हमने देखा कि राजनीति के स्थान पर, यह सामाजिक समस्याओं और
चुनौतियों पर ही केन्द्रित रहा और इस तरह मेरे जैसे करोड़ों सामान्य
लोगों से जुड़ता गया | धीमे-धीमे आलोचना भी समाप्त हो गयी | तो
मेरा प्रश्न यह है कि आप इस कार्यक्रम को किस प्रकार राजनीति से
दूर रखने में सफल रहे | क्या कभी आपका ऐसा मन नहीं हुआ कि
आप इस कार्यक्रम को राजनीति के लिये उपयोग कर सकें या फिर
इस मंच से अपनी सरकार की उपलब्धियाँ गिना सकें ? धन्यवाद |”
(फ़ोन कॉल समाप्त)
आपके फ़ोन-कॉल के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद | आपकी आशंका
सही है | दरअसल नेता को mike मिल जाए और लाखों-करोड़ों की
संख्या में सुनने वाले हों, तो फिर क्या चाहिये ? कुछ युवा मित्रों ने
‘मन की बात’ में आए सब विषयों पर एक study की | उन्होंने सारे
episode का lexical analysis किया और उन्होंने अध्ययन किया कि
कौन से शब्द कितनी बार बोले गए ? कौन से शब्द हैं जो बार-बार
बोले गए ? उनकी एक finding यही है कि यह कार्यक्रम apolitical रहा
| जब ‘मन की बात’ शुरू किया था तभी मैंने तय किया था कि न
इसमें politics हो, न इसमें सरकार की वाह-वाही हो, न इसमें कहीं
मोदी हो और मेरे इस संकल्प को निभाने के लिये सबसे बड़ा संबल,
सबसे बड़ी प्रेरणा मिली आप सबसे | हर ‘मन की बात’ से पहले आने
वाले पत्रों, online comments, phone calls इनमें श्रोताओं की अपेक्षाएँ
साफ़ होती हैं | मोदी आएगा और चला जाएगा, लेकिन यह देश अटल
रहेगा, हमारी संस्कृति अमर रहेगी | 130 करोड़ देशवासियों की छोटी-
छोटी यह कहानियाँ हमेशा जीवित रहेंगी | इस देश को नयी प्रेरणा में
उत्साह से नयी ऊंचाइयों पर लेती जाती रहेंगी | मैं भी कभी-कभी
पीछे मुड़कर के देखता हूँ तो मुझे भी बहुत बड़ा आश्चर्य होता है |
कभी कोई देश के किसी कोने से पत्र लिखकर कहता है - हमें छोटे
दुकानदारों, auto चलाने वालों, सब्जी बेचने वालों ऐसे लोगों से बहुत
ज़्यादा मोल-भाव नहीं करना चाहिये | मैं पत्र पढता हूँ, ऐसा ही भाव
कभी किसी और पत्र में आया हो उसको साथ गूँथ लेता हूँ | दो बातें
मैं अपने अनुभव की भी उसके साथ share कर लेता हूँ, आप सबके
साथ बाँट लेता हूँ और फिर न जाने कब यह बात घर-परिवारों में
पहुँचती है, social media और WhatsApp पर घूमती है और एक
परिवर्तन की ओर बढ़ती रहती है | आपकी भेजी स्वच्छता की
कहानियों ने, सामान्य लोगों के ढ़ेर सारे उदाहरणों ने, न जाने कब
घर-घर में एक नन्हा स्वच्छता का brand Ambassador खड़ा कर दिया
है, जो घरवालों को भी टोकता है और कभी-कभी phone call कर
प्रधानमंत्री को भी आदेश देता है | कब किसी सरकार की इतनी
ताक़त होगी कि selfiewithdaughter की मुहिम हरियाणा के एक छोटे
से गाँव से शुरू होकर पूरे देश में ही नहीं, विदेशों में भी फैल जाए |
समाज का हर वर्ग, celebrities सब जुड़ जाएँ और समाज में सोच-
परिवर्तन की एक नयी modern language में, जिसे आज की पीढ़ी
समझती हो ऐसी अलख जगा जाये | कभी-कभी ‘मन की बात’ का
मजाक भी उड़ता है लेकिन मेरे मन में हमेशा ही 130 करोड़ देशवासी
बसे रहते हैं | उनका मन मेरा मन है | ‘मन की बात’ सरकारी बात
नहीं है - यह समाज की बात है | ‘मन की बात’ एक aspirational
India, महत्वाकांक्षी भारत की बात है | भारत का मूल-प्राण राजनीति
नहीं है, भारत का मूल-प्राण राजशक्ति भी नहीं है | भारत का मूल-
प्राण समाजनीति है और समाज-शक्ति है | समाज जीवन के हजारों
पहलू होते हैं उनमें से एक पहलू राजनीति भी है | राजनीति सबकुछ
हो जाए, यह स्वस्थ समाज के लिए एक अच्छी व्यवस्था नहीं है |
कभी-कभी राजनीतिक घटनाएँ और राजनीतिक लोग, इतने हावी हो
जाते हैं कि समाज की अन्य प्रतिभाएँ और अन्य पुरुषार्थ दब जाते हैं
| भारत जैसे देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए जन-सामान्य की
प्रतिभाएँ पुरुषार्थ को उचित स्थान मिले, यह हम सबका एक सामूहिक
दायित्व है और ‘मन की बात’ इस दिशा में एक नम्र और छोटा सा
प्रयास है |
(फ़ोन कॉल–2)
“नमस्ते प्रधानमंत्री जी ! मैं प्रोमिता मुखर्जी बोल रही हूँ मुंबई
से | सर ‘मन की बात’ का हर episode गहरी insight से, जानकारी
information से, positive stories से और आम आदमी के अच्छे कामों
से भरा हुआ होता है | तो मैं आपसे पूछना चाहती हूँ कि हर
programme से पहले आप कितना prepare करते हैं ?”
(फोन कॉल समाप्त)
फ़ोन कॉल के लिए आप का बहुत-बहुत धन्यवाद ! आपका
सवाल एक प्रकार से अपनेपन से पूछा सवाल है | मैं मानता हूँ ‘मन
की बात’ के 50 episode की सबसे बड़ी सिद्धि यही है कि आप
प्रधानमंत्री से नहीं, जैसे अपने एक निकट साथी से सवाल पूछ रहे हैं |
बस, यही तो लोकतंत्र है | आपने जो सवाल पूछा है अगर मैं सीधे
शब्दों में उत्तर दूँ तो कहूँगा - कुछ भी नहीं | actually ‘मन की बात’
मेरे लिए बहुत ही आसान काम है | हर बार ‘मन की बात’ से पहले
लोगों के पत्र आते हैं | Mygov और Narendra Modi Mobile App पर
लोग अपने विचार share करते हैं | एक Toll Free Number भी है –
1800117800 वहाँ कॉल करके लोग अपने सन्देश अपनी आवाज़ में
record भी करते हैं | मेरी कोशिश रहती है कि ‘मन की बात’ से पहले
ज्यादा से ज्यादा पत्र और comments खुद पढूँ | मैं काफी सारे फ़ोन
कॉल भी सुनता हूँ | जैसे-जैसे ‘मन की बात’ का episode करीब आता
है तो travelling के दौरान, आपके द्वारा भेजे गए ideas और inputs
को मैं बहुत बारीकी से पढ़ता हूँ |
हर पल मेरे देशवासी, मेरे मन में रचे बसे होते हैं और इसलिए
जब भी कोई पत्र पढ़ता हूँ तो पत्र लिखने वाले की परिस्थिति, उसके
भाव, मेरे विचार का हिस्सा बन जाते हैं | वो पत्र मेरे लिए सिर्फ एक
कागज़ का टुकड़ा नहीं रहता है और वैसे ही मैंने करीब 40-45 साल
अखंड रूप से एक परिव्राजक का जीवन जीया है और देश के
अधिकतर जिलों में गया हूँ और देश के दूर-दराज जिलों में मैंने काफी
समय भी बिताया है | और, इसके कारण जब मैं पत्र पढ़ता हूँ तो मैं
उस स्थान और सन्दर्भ से आसानी से अपने आप को relate कर
पाता हूँ | फिर मैं, कुछ factual चीज़ों को जैसे गाँव, व्यक्ति का नाम
उन चीज़ों को नोट कर लेता हूँ | सच पूछो तो “मन की बात” में
आवाज़ मेरी है, लेकिन examples, emotions और spirit मेरे देशवासियों
के ही हैं | मैं ‘मन की बात’ में योगदान देने वाले प्रत्येक व्यक्ति को
धन्यवाद देना चाहता हूँ | ऐसे लाखों लोग हैं जिनका नाम मैं आज
तक ‘मन की बात’ में नहीं ले पाया, लेकिन वो बिना निराश हुए
अपने पत्र, अपने comments भेजते हैं - आपके विचार, आपकी
भावनाएं मेरे जीवन में बहुत ही महत्व रखती हैं | मुझे पूरा विश्वास
है कि आप सभी की बातें पहले से कई गुना ज़्यादा मुझे मिलेंगी और
‘मन की बात’ को, और रोचक और प्रभावी और उपयोगी बनाएगी |
यह भी कोशिश की जाती है कि जो पत्र ‘मन की बात’ में शामिल
नहीं हुए उन पत्रों और सुझावों पर सम्बंधित विभाग भी ध्यान दें | मैं
आकाशवाणी, एफ़.एम. रेडियो, दूरदर्शन, अन्य T.V. channels, social
media के मेरे साथियों को भी धन्यवाद देना चाहता हूँ | उनके परिश्रम
से ‘मन की बात’ ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का तक पहुँच पाती है |
आकाशवाणी की टीम हर episode को बहुत सारी भाषाओं में प्रसारण
के लिए तैयार करती है | कुछ लोग बखूबी regional languages में
मोदी से मिलती-जुलती आवाज़ में और उसी लहज़े से ‘मन की बात’
सुनाते हैं | इस तरह से वे उस 30 minutes के लिए नरेन्द्र मोदी ही
बन जाते हैं | मैं उन लोगों को भी उनके talent और skills के लिए
बधाई देता हूँ, धन्यवाद देता हूँ | मैं आप सबसे भी यह आग्रह करूँगा
कि इस कार्यक्रम को अपनी स्थानीय भाषाओं में भी अवश्य सुनें | मैं
media के अपने उन साथियों को हृदयपूर्वक धन्यवाद देना चाहता हूँ
जो अपने channels पर ‘मन की बात’ का हर बार नियमित रूप से
प्रसारण करते हैं | कोई भी राजनैतिक व्यक्ति media से कभी भी
खुश नहीं होता है, उसे लगता है उसे बहुत कम coverage मिलता है
या जो coverage मिलता है वो negative होता है लेकिन ‘मन की
बात’ में उठाए गए कई विषयों को media ने अपना बना लिया है |
स्वच्छता, सड़क सुरक्षा, drugs free India, selfie with daughter जैसे
कई विषय हैं जिन्हें media ने innovative तरीके से एक अभियान का
रूप देकर आगे बढ़ाने का काम किया | T.V. channels ने इसको most
watched radio programme बना दिया | मैं media का हृदय से
अभिनन्दन करता हूँ | आपके सहयोग के बिना ‘मन की बात’ की यह
यात्रा अधूरी ही रहती |
(फ़ोन कॉल –3)
“नमस्ते मोदी जी ! मैं निधि बहुगुणा बोल रही हूँ मसूरी
उत्तराखण्ड से | मैं दो युवा बच्चों की माँ हूँ | मैंने अक्सर यह देखा है
कि इस उम्र के बच्चे यह पसंद नहीं करते कि उन्हें कोई बताए कि
उन्हें क्या करना है ? चाहे वे teachers हों या वे उनके माता-पिता हों
| पर जब आपके ‘मन की बात’ होती है और आप बच्चों से कुछ
कहते हैं तो वे दिल से समझते हैं और उस बात को करते भी हैं - तो
आप हमसे इस secret को share करेंगे क्या ? क्या जिस तरह से आप
बोलते हैं या जो आप issue उठाते हैं कि वे बच्चे अच्छी तरह समझ
के implement करते हैं | धन्यवाद |” (फ़ोन कॉल समाप्त)
निधि जी, आपके फ़ोन कॉल के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद |
दरअसल मैं कहूँ तो मेरे पास तो कोई secret नहीं है | जो मैं कर रहा
हूँ वो सब परिवारों में भी होता भी होगा | सरल भाषा में कहूँ तो मैं
अपने आप को, उस युवा के अन्दर ढाल लेने का प्रयास करता हूँ, खुद
को उसकी परिस्थितियों में रखकर उसके विचारों के साथ एक
सामंजस्य बैठाने, एक wave length match करने की कोशिश करता हूँ
| हमारे ख़ुद के ज़िंदगी के वो पुराने baggages हैं, जब वो बीच में नहीं
आते हैं तो किसी को समझना आसान हो जाता है | कभी-कभी हमारे
पूर्वाग्रह ही संवाद के लिए सबसे बड़ा संकट बन जाते हैं | स्वीकार-
अस्वीकार और प्रतिक्रियाओं की बजाय किसी की बात को समझना
मेरी प्राथमिकता रहती है | मेरा अनुभव रहा है कि ऐसे में सामने
वाला भी हमें convince करने के लिए भांति-भांति के तर्क या दबाव
बनाने की बजाय हमारी wavelength पर आने का प्रयास करता है |
इसीलिए communication gap खत्म हो जाता है फिर एक प्रकार से
उस विचार के साथ हम दोनों सहयात्री बन जाते हैं | दोनों में से पता
ही नहीं चलता है कि कब और कैसे एक ने अपना विचार छोड़कर
दूसरे का स्वीकार कर लिया है - own कर लिया है | आज के युवाओं
की यही खूबी है कि वो ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे जिस पर स्वयं उन्हें
विश्वास नहीं हो और जब वो किसी चीज़ पर विश्वास करते हैं तो
फिर उसके लिए सब कुछ छोड़-छाड़ कर उसके पीछे लग जाते हैं |
अक्सर लोग परिवारों में बड़ों और teenagers के बीच communication
gap की चर्चा करते हैं | दरअसल अधिकतर परिवारों में teenagers से
बातचीत का दायरा बड़ा सीमित होता है | अधिकतर समय पढ़ाई की
बातें या फिर आदतों और फिर lifestyle को लेकर ‘ऐसा कर – ऐसा
मत कर’ बिना किसी अपेक्षा के खुले मन से बातें, धीरे-धीरे परिवार
में भी बहुत कम होती जा रही है और यह भी चिंता का विषय है |
Expect की बजाय accept और dismiss करने की बजाय discuss
करने से संवाद प्रभावी बनेगा | अलग-अलग कार्यक्रमों या फिर Social
Media के माध्यम से युवाओं के साथ लगातार बातचीत करने का
मेरा प्रयास रहता है | वे जो कर रहे हैं या क्या सोच रहे हैं - उससे
सीखने का मैं हमेशा प्रयास करता रहता हूँ | उनके पास हमेशा ideas
का भण्डार होता है | वे अत्यधिक energetic, innovative और
focussed होते हैं | ‘मन की बात’ के माध्यम से मैं युवाओं के प्रयासों
को, उनकी बातों को, ज्यादा से ज्यादा साझा करने का प्रयास करता
हूँ | अक्सर शिकायत होती है कि युवा बहुत ही अधिक सवाल करते
हैं | मैं कहता हूँ कि अच्छा है कि नौजवान सवाल करते हैं | ये
अच्छी बात इसलिए है क्योंकि इसका अर्थ हुआ कि वे सभी चीज़ों की
जड़ से छानबीन करना चाहते हैं | कुछ लोग कहते हैं कि युवाओं में
धैर्य नहीं होता, लेकिन मेरा मानना है कि युवाओं के पास बर्बाद करने
के लिए समय नहीं है | यही वो चीज़ है जो आज के नौजवानों को
अधिक innovative बनने में मदद करती है, क्योंकि, वे चीज़ों को
तेज़ी से करना चाहते हैं | हमें लगता है आज के युवा बहुत
महत्वाकांक्षी हैं और बहुत बड़ी-बड़ी चीज़ें सोचते हैं | अच्छा है, बड़े
सपने देखें और बड़ी सफलताओं को हासिल करें - आखिर, यही तो
New India है | कुछ लोग कहते हैं कि युवा पीढ़ी एक ही समय में
कई चीज़ें करना चाहती है | मैं कहता हूँ - इसमें बुराई क्या है ? वे
multitasking में पारंगत हैं इसलिए ऐसा करते हैं | अगर हम आस-
पास नज़र दौड़ायें तो वो चाहे Social Entrepreneurship हो, Start-
Ups हो, Sports हो या फिर अन्य क्षेत्र - समाज में बड़ा बदलाव लाने
वाले युवा ही हैं | वे युवा, जिन्होंने सवाल पूछने और बड़े सपने देखने
का साहस दिखाया | अगर हम युवाओं के विचारों को धरातल पर
उतार दें और उन्हें अभिव्यक्त करने के लिए खुला वातावरण दें तो वे
देश में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं | वे ऐसा कर भी रहे हैं |
मेरे प्यारे देशवासियो, गुरुग्राम से विनीता जी ने MyGov पर
लिखा है कि ‘मन की बात’ में मुझे कल यानी 26 नवम्बर को आने
वाले ‘संविधान दिवस’ के बारे में बात करनी चाहिए | उनका कहना है,
यह दिन विशेष है क्योंकि हम संविधान को अपनाने के 70वें वर्ष में
प्रवेश करने वाले हैं |
विनीता जी, आपके सुझाव के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद|
हाँ, कल ‘संविधान दिवस’ है | उन महान विभूतियों को याद
करने का दिन जिन्होंने हमारा संविधान बनाया | 26 नवम्बर, 1949
को हमारे संविधान को अपनाया गया था | संविधान draft करने के
इस ऐतिहासिक कार्य को पूरा करने में संविधान सभा को 2 वर्ष, 11
महीने और 17 दिन लगे | कल्पना कीजिये 3 वर्ष के भीतर ही इन
महान विभूतियों ने हमें इतना व्यापक और विस्तृत संविधान दिया |
इन्होंने जिस असाधारण गति से संविधान का निर्माण किया वो आज
भी time management और productivity का एक उदाहरण है | ये
हमें भी अपने दायित्वों को record समय में पूरा करने के लिए प्रेरित
करता है | संविधान सभा देश की महान प्रतिभाओं का संगम थी,
उनमें से हर कोई अपने देश को एक ऐसा संविधान देने के लिए
प्रतिबद्ध था जिससे भारत के लोग सशक्त हों, ग़रीब से ग़रीब
व्यक्ति भी समर्थ बने |
हमारे संविधान में खास बात यही है कि अधिकार और कर्तव्य
यानी Rights and Duties, इसके बारे में विस्तार से वर्णन किया गया
है | नागरिक के जीवन में इन्हीं दोनों का तालमेल देश को आगे ले
जाएगा | अगर हम दूसरों के अधिकार का सम्मान करेंगे तो हमारे
अधिकारों की रक्षा अपने आप हो जायेगी और इसी तरह अगर हम
संविधान में दिए अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे तो भी हमारे
अधिकारों की रक्षा अपने आप हो जायेगी | मुझे अभी भी याद है
2010 में जब भारत के गणतंत्र को 60 साल हुए थे तब गुजरात में
हमने हाथी पर रख कर संविधान की शोभा-यात्रा निकाली थी | युवाओं
में संविधान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए और उन्हें संविधान
के पहलुओं से जोड़ने के लिए ये एक यादगार प्रसंग था | वर्ष 2020
में एक गणतंत्र के रूप में हम 70 साल पूरे करेंगे और 2022 में
हमारी आज़ादी के 75 वर्ष पूरे हो जायेंगे |
आइये, हम सभी अपने संविधान के मूल्यों को आगे बढ़ाएँ और
अपने देश में Peace, Progression, Prosperity यानी शांति, उन्नति
और समृद्धि को सुनिश्चित करें |
मेरे प्यारे देशवासियो, संविधान सभा के बारे में बात करते हुए
उस महापुरुष का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता जो संविधान
सभा के केंद्र में रहे | ये महापुरुष थे पूजनीय डॉ. बाबा साहेब
अम्बेडकर | 6 दिसम्बर को उनका महा-परिनिर्वाण दिवस है | मैं सभी
देशवासियों की ओर से बाबा साहब को नमन् करता हूँ जिन्होंने करोड़ों
भारतीयों को सम्मान से जीने का अधिकार दिया | लोकतंत्र बाबा
साहब के स्वभाव में रचा-बसा था और वो कहते थे कि भारत के
लोकतांत्रिक मूल्य कहीं बाहर से नहीं आए हैं | गणतंत्र क्या होता है
और संसदीय व्यवस्था क्या होती है - ये भारत के लिए कोई नई बात
नहीं है | संविधान सभा में उन्होंने एक बहुत भावुक अपील की थी कि
इतने संघर्ष के बाद मिली स्वतंत्रता की रक्षा हमें अपने खून की
आखिरी बूँद तक करनी है | वे यह भी कहते थे कि हम भारतीय भले
ही अलग-अलग background के हों लेकिन हमें सभी चीज़ों से ऊपर
देशहित को रखना होगा | India First - डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर का
यही मूलमंत्र था | एक बार फिर पूज्य बाबा साहब को विनम्र
श्रद्धांजलि |
मेरे प्यारे देशवासियो, दो दिन पहले 23 नवम्बर को हम सबने
श्री गुरु नानक देव जी की जयंती मनाई है और अगले वर्ष यानी
2019 में हम उनका 550वाँ प्रकाश-पर्व मनाने जा रहे हैं | गुरु नानक
देव जी ने सदा ही पूरी मानवता के कल्याण के लिए सोचा | उन्होंने
समाज को हमेशा सत्य, कर्म, सेवा, करुणा और सौहार्द का मार्ग
दिखाया | देश अगले वर्ष गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती
समारोह को भव्य रूप से मनायेगा | इसका रंग देश ही नहीं, दुनिया-
भर में बिखरेगा | सभी राज्य सरकारों और केन्द्रीय शासित प्रदेशों से
भी इस अवसर को धूमधाम से मनाने का अनुरोध किया गया है |
इसी प्रकार गुरु नानक देव जी का 550वाँ प्रकाश पर्व विश्व के सभी
देशों में भी मनाया जाएगा | इसके साथ ही गुरु नानक जी से जुड़े
पवित्र स्थलों के मार्ग पर एक ट्रेन भी चलाई जायेगी | अभी हाल ही
में जब मैं इससे जुड़ी मीटिंग कर रहा था तो उसी समय मुझे लखपत
साहिब गुरुद्वारा की याद आई | गुजरात के 2001 के भूकंप के दौरान
उस गुरूद्वारे को भारी नुकसान पहुँचा था, लेकिन, जिस प्रकार
स्थानीय लोगों के साथ मिलकर राज्य सरकार ने उसका जीर्णोद्धार
कराया वो आज भी एक मिसाल है |
भारत सरकार ने एक बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय किया है कि
करतारपुर corridor बनाने का ताकि हमारे देश के यात्री आसानी से
पाकिस्तान में, करतारपुर में गुरु नानक देव जी के उस पवित्र स्थल
पर दर्शन कर सकें |
मेरे प्यारे देशवासियो, 50 episode के बाद हम फिर एक बार
मिलेंगे अगले ‘मन की बात’ में और मुझे विश्वास है कि आज ‘मन
की बात’ के इस कार्यक्रम के पीछे की भावनाओं को मुझे पहली बार
आपके समक्ष कहने का मौका मिला क्योंकि आप लोगों ने ऐसे ही
सवाल पूछे लेकिन हमारी यात्रा जारी रहेगी | आपका साथ जितना
ज्यादा जुड़ेगा, उतनी यात्रा हमारी और गहरी होगी और हर किसी को
संतोष देनेवाली मिलेगी | कभी-कभी लोगों के मन में सवाल उठता है
कि ‘मन की बात’ से मुझे क्या मिला ? मैं आज कहना चाहूँगा कि
‘मन की बात’ के जो feedback आते हैं, उसमें एक बात जो मेरे मन
को बहुत छू जाती है | अधिकतम लोगों ने ये कहा कि जब हम
परिवार के सब लोगों के साथ बैठकर के ‘मन की बात’ सुनते हैं तो
ऐसे लगता है कि हमारे परिवार का मुखिया हमारे बीच में बैठ करके
हमारी अपनी ही बातों को हमारे साथ share कर रहा है | जब ये बात
मैंने व्यापक रूप से सुनी मुझे बहुत संतोष हुआ कि मैं आपका हूँ,
आप में से ही हूँ, आपके बीच हूँ, आप ही ने मुझे बड़ा बनाया है और
एक प्रकार से मैं भी आपके परिवार के सदस्य के रूप में ही ‘मन की
बात’ के माध्यम से बार-बार आता रहूँगा, आपसे जुड़ता रहूँगा |
आपके सुख-दुःख, मेरे सुख-दुःख | आपकी आकांक्षा, मेरी आकांक्षा |
आपकी महत्वाकांक्षा, मेरी महत्वाकांक्षा |
आइये, इस यात्रा को हम और आगे बढ़ाएँ |
बहुत-बहुत धन्यवाद |
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