Friday, 1 March 2013

आकाशवाणी भोपाल का आयोजन - सिनेमा की भाषा व हिन्दी का प्रसार



आकाशवाणी के महानिदेशक श्री लीलाधर मंडलोई द्वारा आकाशवाणी महानिदेशक का पदभार संभालने के बाद से लगातार साहित्यिक एवं संगीत कंसर्ट की एक श्रृंखला सामने आयी है जिसने न केवल दर्शकों की बौद्धिक प्यास को तृप्त किया है वरन् आकाशवाणी के श्रोताओं की संख्या बढ़ाने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निबाही है । इसी कड़ी में भोपाल में सिनेमा की भाषा और हिंदी विषय पर एक अनूठा व्याख्यान आयोजित किया गया

ये जानकारी देते हुए आकाशवाणी भोपाल के केन्द्राध्यक्ष श्री रामस्वरूप रतौनिया ने बताया कि आकाशवाणी भोपाल राजभाषा कार्यान्वयन समिति द्वारा दुष्यन्त कुमार स्मृति व्याख्यान माला के अंतर्गत विगत दिनों सिनेमा की भाषा व हिन्दी का प्रसार विषय पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिसमें मुंबई से पधारें सिने विशषज्ञ व समीक्षक श्री जयप्रकाश चौकसे ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया ।

व्यख्यान में अपने विचार प्रकट करते हुए श्री चौकसे ने कहा कि सिनेमा के अविष्कार के महीने भर बाद ही मैक्सिम गोर्की और दार्’शनिक बर्गसन ने इसका प्रदर्शन देखा तथा उनकी प्रारंभिक टिप्पणियों ने ही सिनेमा की भाषा, उसके ग्रामर और मुहावरे को निश्चित कर दिया । मशीन की कोख से जन्मी इस विधा के पहले अठारह वर्ष तो मूक सिनेमा के थे परन्तु ध्वनि के आने के बाद भाषा का प्रयोग प्रारंभ हुआ ।

भारतीय सिनेमा के उदभव के समय से ही देश के विभिन्न क्षेत्रों और अंचलो के लोग इससे जुड़े, अत: इसकी कामकाजी भाषा अंग्रेजी तय हुई क्योंकि इसकी सारी तकनीकी किताबें भी अंग्रेजी में थी । अंग्रेजी में लिखी पटकथा से हिन्दुस्तानी में संवाद के अनुवाद के कारण संवाद लेखक की श्रेणी बनी जो दुनिया के किसी अन्य दे’ा में नहीं है । इस प्रक्रिया के कारण इसमें सभी भाषाओं के शब्दों का समावेश हुआ । अनेक महान साहित्यकार भी इस माध्यम से जुड़े, जैसे मुं’ाी प्रेमचंद, सआदत हुसैन मंटो, राजिंदर सिंह बेदी, कृ’नचंद, पे्रमी जी इत्यादि ।

हिन्दी फिल्मों के गीत-संगीत ने हिन्दी का प्रसार बहुत किया । यहां तक कि दक्षिण में राजनैतिक शक्तियों द्वारा हिन्दी विरोध के वर्षो में गीत संगीत के माधुर्य के कारण दक्षिण के लोगों ने हिन्दी सीखी । इसी गीत संगीत के कारण खाड़ी के देशों, रूस और चीन में भी लोगों ने हिन्दी सीखी ।

वर्तमान कालखंड में बाजार और विज्ञापन की ताकतों ने हिन्दी का अहित किया है और देवनागरी लिपि के लोप का षड़यंत्र भी करके रोमन लिपि को महत्व दिया जा रहा है, जो बहुत घातक है तथा इस षडयंत्र को विफल करने की जिम्मेदारी हम सब की हैं ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार, फिल्म विशेषज्ञ व समीक्षक श्री राजकुमार केसवानी ने कहा कि भाई जयप्रकाश की चिंताओं से मैं इत्तफाक रखता हूँ और यह सच है कि बजार और विज्ञापनों की दुनिया व आर्थिक उदारीकरण और वैशवीकरण के इस युग में हमारे देश की देवनागरी, हिन्दी, लोक बोलियाँ प्रादेशिक भाषाएँ तथा हिन्दी का अहित लगातार हो रहा है व चाहे हमारी लोक बोलियाँ हों अथवा लोक भाषाएँ या प्रादेशि क भाषाएँ इनके साथ-साथ हिन्दी के भी विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है । ऐसी स्थिति में हम सब को यह गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि हम अपनी इस विरासत को कैसे विलुप्त होने से बचाएं ।

विचारोत्तेजक रही इस व्याख्यान माला के प्रारंभ में स्वागत भाषण देते हुए केन्द्राध्यक्ष एवं कार्यक्रम प्रमुख श्री रामस्वरूप रतौनिया ने कहा कि आकाशवाणी भोपाल द्वारा पिछले एक वर्ष से लगातार आमंत्रित श्रोताओं के समक्ष कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है और इन सब आयोजनों के मूल में हमारे महानिदेशक श्री लीलाधर मण्डलोई जी की परिकल्पना है ।

इससे पूर्व कार्यक्रम के आरम्भ में आकाशवाणी भोपाल के कार्यालय व कार्यक्रम प्रमुख श्री रामस्वरूप रतौनिया के साथ-साथ श्री धर्मेंन्द्र श्रीवास्तव, सहायक निदेशक(अभि.) तथा श्री राजीव श्रीवास्तव राजभाषा समन्वयक ने अतिथियों का स्वागत किया ।

व्याख्यान माला का संचालन आका’शवाणी भोपाल के वरिष्ठ उदघोषक श्री अनिल मुंशी ने किया वही आभार कार्यकम अधिकारी श्री साकेत अग्निहोत्री ने माना।
वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार केशवानी जी
प्रोग्राम हेड, श्री आर एस रतोनिया जी का स्वागत भाषण
जयप्रकाश चौकसे संबोधित करते हुए

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