संगोष्ठी के दौरान डॉ कपिला वात्स्यायन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि बदलते युग मे भी रेडियो की पहुंच घर- घर तक है। परिवर्तन के दौर मे रेडियो कार्यक्रमों की प्रकृति मे भी बदलाव आ रहा है, और यह अनपेक्षित नहीं है, पर रेडियो कर्मियों को अपने सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति आदर का भाव बनाये रखना होगा ।
श्री स्वपन दासगुप्ता ने रेडियो प्रसारण के क्षेत्र में नवीन प्रोधोगिकी के समुचित प्रयोग की जरुरत बतलाई। श्री दासगुप्ता ने कहा कि इंटरनेट रेडियो जैसी तकनीक का उपयोग अभी तक काफी सीमित है ।आपने स्थानीय बोलियो एवं स्थानीय प्रतिभाओ को बढ़ावा देने पर बल दिया और शास्त्रीय संगीत के प्रचार- प्रसार में रेडियो के दायित्व का स्मरण कर या।
डॉ संतोष के मेहरोत्रा ने कहा कि पुराने होने भर से मधुर संगीत अलोकप्रिय नहीं होता। इसके प्रमाण के तौर पर आपने आकाशवाणी के एफ एम गोल्ड चैनल का ज़िक्र किया, जिस पर आज भी पुराने फिल्म गीतों का प्रसारण होता है ।डॉ मल्होत्रा ने कहा की रेडियो को जन- कल्याणकारी शासकीय योजनाओ के क्रियान्वयन की निगहबानी करनी होगी, ताकि जनता का हक़ उसे मिल सके। आपने युवाओ की विशाल आबादी के अनुपात में रेडियो में उनकी सहभागिता सुनिश्चित करने और शास्त्रीय संगीत के लिए अलग चैनल स्थापित किए जाने की जरुरत बतलाई।
आकाशवाणी के उप- महानिदेशक श्री राजीव कुमार शुक्ल ने वक्ताओ के प्रति धन्यवाद - ज्ञापन किया । वक्ताओं द्वारा रेडियो से जुडी अपनी पुरानी यादों को ताजा किये जाने पर आपने कहा कि अगर स्मृतियों से संवाद न होता रहे तो सपने भी मुश्किल से आते है । आपने कहा कि आकाशवाणी इस बात का ध्यान रखती है कि देश का कोई भी वर्ग उपेक्षित न रहे । आकाशवाणी का दिल सिर्फ दिल्ली में ही नहीं वल्कि क्योंझर और बस्तर में भी धड़कता है । आपने तुर्की के महान कवि नाज़िम हिकमत की काव्य -पंक्ति उद्धरित करते हुए कहा कि रेडियो की ध्वनि- तरंगें नीले आसमान में उड़ने वाले परिदो की मानिंद हैं । मानवता के विकास की अनंत संभावनाओं के द्वार जिस दिशा में खुलते हैं , रेडियो के प्रसारणकर्ता उस ओर अग्रसर हैं ।
आकाशवाणी के उप- महानिदेशक श्री राजीव कुमार शुक्ल ने वक्ताओ के प्रति धन्यवाद - ज्ञापन किया । वक्ताओं द्वारा रेडियो से जुडी अपनी पुरानी यादों को ताजा किये जाने पर आपने कहा कि अगर स्मृतियों से संवाद न होता रहे तो सपने भी मुश्किल से आते है । आपने कहा कि आकाशवाणी इस बात का ध्यान रखती है कि देश का कोई भी वर्ग उपेक्षित न रहे । आकाशवाणी का दिल सिर्फ दिल्ली में ही नहीं वल्कि क्योंझर और बस्तर में भी धड़कता है । आपने तुर्की के महान कवि नाज़िम हिकमत की काव्य -पंक्ति उद्धरित करते हुए कहा कि रेडियो की ध्वनि- तरंगें नीले आसमान में उड़ने वाले परिदो की मानिंद हैं । मानवता के विकास की अनंत संभावनाओं के द्वार जिस दिशा में खुलते हैं , रेडियो के प्रसारणकर्ता उस ओर अग्रसर हैं ।
आकाशवाणी की सार्थकता श्रोताओं द्वारा उसे सुन सकने में है…दिल्लि आकाशवाणी कहीं भी ठीक से सुनाई ही नहीं देति…कुछ लोगों ने हार कर DTH के सहारे रेडियो सुनने का बंदोबस्त है…पर जो नहीं करना चाहते या नहीं कर सकते उनके लिए इंद्रप्रस्थ या राजधानी चैनल के अस्तित्व ही खत्म हो गए। केवल शास्त्रीय ही नहीं बल्कि सुगम संगीत और कई अच्छे spoken words के कार्यक्रम मिस कर जाते हैं और मजबूरन FM पर केवल फ़िल्मी गाने सुनकर संतोष करना पड़ता है. कृपया ट्रांसमीटर पर आप ध्यान दें। नहीं तो मीडियम वेव के कार्यक्रमों को भी FM पर लाएं। नहीं तो ये मानने पर हम मजबूर हो जायेंगे की रेडियो का जान बुझ कर गला घोंटा जा रहा है।
ReplyDelete