Sunday 30 July 2017

‘मन की बात’ प्रसारण तिथि: 30.07.2017

मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | मनुष्य का मन ही ऐसा है कि वर्षाकाल मन के लिये बड़ा लुभावना काल होता है | पशु, पक्षी, पौधे, प्रकृति - हर कोई वर्षा के आगमन पर प्रफुल्लित हो जाते हैं | लेकिन कभी-कभी वर्षा जब विकराल रूप लेती है, तब पता चलता है कि पानी की विनाश करने की भी कितनी बड़ी ताक़त होती है | प्रकृति हमें जीवन देती है, हमें पालती है, लेकिन कभी-कभी बाढ़, भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदायें, उसका भीषण स्वरूप, बहुत विनाश कर देता है | बदलते हुए मौसम-चक्र और पर्यावरण में जो बदलाव आ रहा है, उसका बड़ा ही negative impact भी हो रहा है | पिछले कुछ दिनों से भारत के कुछ हिस्सों में विशेषकर असम, North-East, गुजरात, राजस्थान, बंगाल के कुछ हिस्से, अति-वर्षा के कारण प्राकृतिक आपदा झेलनी पड़ी है | बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की पूरी monitoring हो रही है | व्यापक स्तर पर राहत कार्य किए जा रहे हैं | जहाँ हो सके, वहाँ मंत्रिपरिषद के मेरे साथी भी पहुँच रहे हैं | राज्य सरकारें भी अपने--अपने तरीक़े से बाढ़ पीड़ितों को मदद करने के लिए भरसक प्रयास कर रही हैं | सामाजिक संगठन भी, सांस्कृतिक संगठन भी, सेवा-भाव से काम करने वाले नागरिक भी, ऐसी परिस्थिति में लोगों को मदद पहुँचाने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं | भारत सरकार की तरफ़ से, सेना के जवान हों, वायु सेना के लोग हों, NDRF के लोग हों, paramilitary forces हों, हर कोई ऐसे समय आपदा पीड़ितों की सेवा करने में जी-जान से जुड़ जाते हैं | बाढ़ से जन-जीवन काफी अस्त-व्यस्त हो जाता है | फसलों, पशुधन, infrastructure, roads, electricity, communication links सब कुछ प्रभावित हो जाता है |  खास कर के हमारे किसान भाइयों को, फ़सलों को, खेतों को जो नुकसान होता है, तो इन दिनों तो हमने insurance कंपनियों को और विशेष करके crop insurance कंपनियों को भी proactive होने के लिये योजना बनाई है, ताकि किसानों के claim settlement तुरंत हो सकें | और बाढ़ की परिस्थिति को निपटने के लिये 24x7 control room helpline number 1078 लगातार काम कर रहा है | लोग अपनी कठिनाइयाँ बताते भी हैं | वर्षा ऋतु के पूर्व अधिकतम स्थानों पर mock drill करके पूरे सरकारी तंत्र को तैयार किया गया | NDRF की टीमें लगाई गईं | स्थान-स्थान पर आपदा-मित्र बनाना और आपदा-मित्र के do’s & don’ts की training करना, volunteers तय करना, एक जन-संगठन खड़ा कर-करके ऐसी परिस्थिति में काम करना | इन दिनों मौसम का जो पूर्वानुमान मिलता है, अब technology इतनी आगे बढ़ी है, space science का भी बहुत बड़ा role रहा है, उसके कारण क़रीब-क़रीब अनुमान सही निकलते हैं | धीरे-धीरे हम लोग भी स्वभाव बनाएँ कि मौसम के पूर्वानुमान के अनुसार अपने कार्यकलापों की भी रचना कर सकते हैं, तो उससे हम नुकसान से बच सकते हैं |

जब भी मैं ‘मन की बात’ के लिये तैयारी करता हूँ, तो मैं देख रहा हूँ, मुझसे ज्यादा देश के नागरिक तैयारी करते हैं | इस बार तो GST को लेकर के इतनी चिट्ठियाँ आई हैं, इतने सारे phone call आए हैं और अभी भी लोग GST के संबंध में खुशी भी व्यक्त करते हैं, जिज्ञासा भी व्यक्त करते हैं | एक phone call मैं आपको भी सुनाता हूँ: -

“नमस्कार, प्रधानमंत्री जी, मैं गुड़गांव से नीतू गर्ग बोल रही हूँ | मैंने आपकी Chartered Accountants Day की speech सुनी और बहुत प्रभावित हुई | इसी तरह हमारे देश में पिछले महीने आज ही की तारीख़ पर Goods and Services Tax - GST की शुरुआत हुई | क्या आप बता सकते हैं कि जैसा सरकार ने expect किया था, वैसे ही result एक महीने बाद आ रहे हैं या नहीं? मैं इसके बारे में आपके विचार सुनना चाहूँगी, धन्यवाद |”

GST के लागू हुए क़रीब एक महीना हुआ है और उसके फ़ायदे दिखने लगे हैं | और मुझे बहुत संतोष होता है, खुशी होती है, जब कोई ग़रीब मुझे चिट्ठी लिखकर के कहता है कि GST के कारण एक ग़रीब की ज़रुरत की चीज़ों में कैसे दाम कम हुए हैं, चीज़ें कैसे सस्ती हुई हैं | अगर North-East, दूर-सुदूर पहाड़ों में, जंगलों में रहने वाला कोई व्यक्ति चिट्ठी लिखता है कि शुरू में डर लगता था कि पता नहीं क्या है; लेकिन अब जब मैं उसमें सीखने-समझने लगा, तो मुझे लगता है, पहले से ज़्यादा आसान हो गया काम | व्यापार और आसान हो गया | और सबसे बड़ी बात है, ग्राहकों का व्यापारी के प्रति भरोसा बढ़ने लगा है | अभी मैं देख रहा था कि transport and logistics sector पर कैसे GST का impact पड़ा | कैसे अब ट्रकों की आवाजाही बढ़ी है ! दूरी तय करने में समय कैसे कम हो रहा है ! highways clutter free हुए हैं |  ट्रकों की गति बढ़ने के कारण pollution भी कम हुआ है | सामान भी बहुत जल्दी से पहुँच रहा है | ये सुविधा तो है ही, लेकिन साथ-साथ आर्थिक गति को भी इससे बल मिलता है | पहले अलग-अलग tax structure होने के कारण transport and logistics sector का अधिकतम resources paperwork maintain करने में लगता था और उसको हर state के अन्दर अपने नये-नये warehouse बनाने पड़ते थे | GST - जिसे मैं Good and Simple Tax कहता हूँ, सचमुच में उसने हमारी अर्थव्यवस्था पर एक बहुत ही सकारात्मक प्रभाव और बहुत ही कम समय में उत्पन्न किया है | जिस तेज़ी से smooth transition हुआ है, जिस तेज़ी से migration हुआ है, नये registration हुए हैं, इसने पूरे देश में एक नया विश्वास पैदा किया है | और कभी-न-कभी अर्थव्यवस्था के पंडित, management के पंडित, technology के पंडित, भारत के GST के प्रयोग को विश्व के सामने एक model के रूप में research करके ज़रूर लिखेंगे | दुनिया की कई युनिवर्सिटियों के लिए एक case study बनेगा | क्योंकि इतने बड़े scale पर इतना बड़ा change और इतने करोड़ों लोगों के involvement के साथ इतने बड़े विशाल देश में उसको लागू करना और सफलतापूर्वक आगे बढ़ना, ये अपने-आप में सफलता की एक बहुत बड़ी ऊँचाई है | विश्व ज़रूर इस पर अध्ययन करेगा | और GST लागू किया है, सभी राज्यों की उसमें भागीदारी है, सभी राज्यों की ज़िम्मेवारी भी है | सारे निर्णय राज्यों ने और केंद्र ने मिलकर के सर्वसम्मति से किए हैं | और उसी का परिणाम है कि हर सरकार की एक ही प्राथमिकता रही कि GST के कारण ग़रीब की थाली पर कोई बोझ न पड़े | और GST App पर आप भलीभाँति जान सकते हैं कि GST के पहले जिस चीज़ का जितना दाम था, तो नई परिस्थिति में कितना दाम होगा, वो सारा आपके mobile phone पर available है | One Nation - One Tax, कितना बड़ा सपना पूरा हुआ | GST के मसले को मैंने देखा है कि जिस प्रकार से तहसील से ले करके भारत सरकार तक बैठे हुए सरकार के अधिकारियों ने जो परिश्रम किया है, जिस समर्पण भाव से काम किया है, एक प्रकार से जो friendly environment बना सरकार और व्यापारियों के बीच, सरकार और ग्राहकों के बीच, उसने विश्वास को बढ़ाने में बहुत बड़ी भूमिका अदा की है | मैं इस कार्य से लगे हुए सभी मंत्रालयों को, सभी विभागों को, केंद्र और राज्य सरकार के सभी मुलाज़िमों को ह्रदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूँ | GST भारत की सामूहिक शक्ति की सफलता का एक उत्तम उदाहरण है | यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है | और ये सिर्फ tax reform नहीं है, एक नयी ईमानदारी की संस्कृति को बल प्रदान करने वाली अर्थव्यवस्था है | एक प्रकार से एक सामाजिक सुधार का भी अभियान है | मैं फिर एक बार सरलतापूर्वक इतने बड़े प्रयास को सफल बनाने के लिए कोटि-कोटि देशवासियों को कोटि-कोटि वंदन करता हूँ |
    मेरे प्यारे देशवासियो, अगस्त महीना क्रांति का महीना होता है | सहज रूप से ये बात हम बचपन से सुनते आए हैं और उसका कारण है, 1 अगस्त, 1920 – ‘असहयोग आन्दोलन’ प्रारंभ हुआ | 9 अगस्त, 1942 – ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ प्रारंभ हुआ, जिसे ‘अगस्त क्रांति’ के रूप में जाना जाता है और 15 अगस्त, 1947 - देश आज़ाद हुआ | एक प्रकार से अगस्त महीने में अनेक घटनायें आज़ादी की तवारीख़ के साथ विशेष रूप से जुड़ी हुई हैं | इस वर्ष हम ‘भारत छोड़ो’ ‘Quit India Movement’ इस आन्दोलन की 75वीं वर्षगाँठ मनाने जा रहे हैं | लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि ‘भारत छोड़ो’ - ये नारा डॉ. यूसुफ़ मेहर अली ने दिया था | हमारी नयी पीढ़ी को जानना चाहिए कि 9 अगस्त, 1942 को क्या हुआ था | 1857 से 1942 तक जो आज़ादी की ललक के साथ देशवासी जुड़ते रहे, जूझते रहे, झेलते रहे, इतिहास के पन्ने भव्य भारत के निर्माण के लिए हमारी प्रेरणा हैं | हमारे आज़ादी के वीरों ने त्याग, तपस्या, बलिदान दिए हैं, उससे बड़ी प्रेरणा क्या हो सकती है | ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण संघर्ष था | इसी आन्दोलन ने ब्रिटिश-राज से मुक्ति के लिये पूरे देश को संकल्पित कर दिया था | ये वो समय था, जब अंग्रेज़ी सत्ता के विरोध में भारतीय जनमानस हिंदुस्तान के हर कोने में, गाँव हो, शहर हो, पढ़ा हो, अनपढ़ हो, ग़रीब हो, अमीर हो, हर कोई कंधे-से-कंधा मिला करके ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का हिस्सा बन गया था | जन-आक्रोश अपनी चरम सीमा पर था | महात्मा गाँधी के आह्वान पर लाखों भारतवासी ‘करो या मरो’ के मंत्र के साथ अपने जीवन को संघर्ष में झोंक रहे थे | देश के लाखों नौजवानों ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी, किताबें छोड़ दी थीं | आज़ादी का बिगुल बजा, वो चल पड़े थे | 9 अगस्त, ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ महात्मा गाँधी ने आह्वान तो किया, लेकिन सारे बड़े नेता अंग्रेज़ सल्तनत ने जेल में हर किसी को डाल दिया और वो कालखंड था कि देश में second generation की leadership ने - डॉ. लोहिया, जयप्रकाश नारायण जैसे महापुरुषों ने अग्रिम भूमिका निभाई थी |
    ‘असहयोग आन्दोलन’ और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ 1920 और 1942 महात्मा गाँधी के दो अलग-अलग रूप दिखाई देते हैं | ‘असहयोग आन्दोलन’ के रूप-रंग अलग थे और 42 की वो स्थिति आई, तीव्रता इतनी बढ़ गई कि महात्मा गाँधी जैसे महापुरुष ने ‘करो या मरो’ का मंत्र दे दिया | इस सारी सफलता के पीछे जन-समर्थन था, जन-सामर्थ्य थी, जन-संकल्प था, जन-संघर्ष था | पूरा देश एक होकर के लड़ रहा था | और मैं कभी-कभी सोचता हूँ, अगर इतिहास के पन्नों को थोड़ा जोड़ करके देखें, तो भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम 1857 में हुआ | 1857 से प्रारंभ हुआ स्वतंत्रता संग्राम 1942 तक हर पल देश के किसी-न-किसी कोने में चलता रहा | इस लम्बे कालखंड ने देशवासियों के दिल में आज़ादी की ललक पैदा कर दी | हर कोई कुछ-न-कुछ करने के लिये प्रतिबद्ध हो गया | पीढ़ियाँ बदलती गईं, लेकिन संकल्प में कोई कमी नहीं आई | लोग आते गए, जुड़ते गए, जाते गए, नये आते गए, नये जुड़ते गए और अंग्रेज़ सल्तनत को उखाड़ करके फेंकने के लिये देश हर पल प्रयास करता रहा | 1857 से 1942 तक के इस परिश्रम ने, इस आन्दोलन ने एक ऐसी स्थिति पैदा की कि 1942 इसकी चरम सीमा पर पहुँचा और ‘भारत छोड़ो’ का ऐसा बिगुल बजा कि 5 वर्ष के भीतर-भीतर 1947 में अंग्रेज़ों को जाना पड़ा | 1857 से 1942 - आज़ादी की वो ललक जन-जन तक पहुँची | और 1942 से 1947 - पाँच साल, एक ऐसा जन-मन बन गया, संकल्प से सिद्धि के पाँच निर्णायक वर्ष के रूप में सफलता के साथ देश को आज़ादी देने का कारण बन गए | ये पाँच वर्ष निर्णायक वर्ष थे |
अब मैं आपको इस गणित के साथ जोड़ना चाहता हूँ I 1947 में हम आज़ाद हुए I आज 2017 है I क़रीब 70 साल हो गए I सरकारें आईं-गईं I व्यवस्थायें बनीं, बदलीं, पनपीं, बढ़ीं I देश को समस्याओं से मुक्त कराने के लिये हर किसी ने अपने-अपने तरीक़े से प्रयास किए I देश में रोज़गार बढ़ाने के लिये, ग़रीबी हटाने के लिये, विकास करने के लिये प्रयास हुए I अपने-अपने तरीक़े से परिश्रम भी हुआ I सफलतायें भी मिलीं I अपेक्षायें भी जगीं I जैसे 1942 to 1947 संकल्प से सिद्धि के एक निर्णायक पाँच वर्ष थे I मैं देख रहा हूँ कि 2017 से 2022 - संकल्प से सिद्धि के और एक पांच साल का तबका हमारे सामने आया है I इस 2017 के 15 अगस्त को हम संकल्प पर्व के रूप में मनाएँ और 2022 में आज़ादी के जब 75 साल होंगे, तब हम उस संकल्प को सिद्धि में परिणत करके ही रहेंगे I अगर सवा-सौ करोड़ देशवासी 9 अगस्त, क्रांति दिवस को याद करके, इस 15 अगस्त को हर भारतवासी संकल्प करे, व्यक्ति के रूप में, नागरिक के रूप में - मैं देश के लिए इतना करके रहूँगा, परिवार के रूप में ये करूँगा, समाज के रूप में ये करूँगा, गाँव और शहर के रूप में ये करूँगा, सरकारी विभाग के रूप में ये करूँगा, सरकार के नाते ये करूँगा I करोड़ों-करोड़ों संकल्प हों | करोड़ों-करोड़ों संकल्प को परिपूर्ण करने के प्रयास हों I तो जैसे 1942 to 1947 पाँच साल देश को आज़ादी के लिए निर्णायक बन गए, ये पांच साल 2017 से 2022 के, भारत के भविष्य के लिए भी निर्णायक बन सकते हैं और बनाने हैं I पांच साल बाद देश की आज़ादी के 75 साल मनाएंगे I तब हम सब लोगों को दृढ़ संकल्प लेना है आज I 2017 हमारा संकल्प का वर्ष बनाना है I यही अगस्त मास संकल्प के साथ हमें जुड़ना है और हमें संकल्प करना है I गंदगी - भारत छोड़ो, ग़रीबी - भारत छोड़ो, भ्रष्टाचार - भारत छोड़ो, आतंकवाद - भारत छोड़ो, जातिवाद - भारत छोड़ो, सम्प्रदायवाद - भारत छोड़ो I आज आवश्यकता ‘करेंगे या मरेंगे’ की नहीं, बल्कि नये भारत के संकल्प के साथ जुड़ने की है, जुटने की है, जी-जान से सफलता पाने के लिये पुरुषार्थ करने की है | संकल्प को लेकर के जीना है, जूझना है I आइए, इस अगस्त महीने में 9 अगस्त से संकल्प से सिद्धि का एक महाभियान चलाएं I प्रत्येक भारतवासी, सामाजिक संस्थायें, स्थानीय निकाय की इकाइयाँ, स्कूल, कॉलेज, अलग-अलग संगठन - हर एक New India के लिए कुछ-न-कुछ संकल्प लें I एक ऐसा संकल्प, जिसे अगले 5 वर्षों में हम सिद्ध कर के दिखाएँगे I युवा संगठन, छात्र संगठन, NGO आदि सामूहिक चर्चा का आयोजन कर सकते हैं I नये-नये idea उजागर कर सकते हैं I एक राष्ट्र के रूप में हमें कहाँ पहुंचना है? एक व्यक्ति के नाते उसमें मेरा क्या योगदान हो सकता है? आइए, इस संकल्प के पर्व पर हम जुड़ें I
मैं आज विशेष रूप से online world, क्योंकि हम कहीं हों या न हों, लेकिन online तो ज़रुर होते हैं; जो online वाली दुनिया है और खासकर के मेरे युवा साथियों को, मेरे युवा मित्रों को, आमंत्रित करता हूँ कि नये भारत के निर्माण में वे innovative तरीक़े से योगदान के लिए आगे आएँ I technology का उपयोग करते video, post, blog, आलेख, नये-नये idea - वो सभी बातें लेकर के आएँ I इस मुहिम को एक जन आंदोलन में परिवर्तित करें I NarendraModiApp पर भी युवा मित्रों के लिये Quit India Quiz launch किया जाएगा I यह quiz युवाओं को देश के गौरवशाली इतिहास से जोड़ने और स्वतंत्रता संग्राम के नायकों से परिचित कराने का एक प्रयास है I मैं मान रहा हूँ कि आप ज़रुर इसका व्यापक प्रचार करें, प्रसार करें I
मेरे प्यारे देशवासियो, 15 अगस्त, देश के प्रधान सेवक के रूप में मुझे लाल क़िले से देश के साथ संवाद करने का अवसर मिलता है I मैं तो एक निमित्त-मात्र हूँ I वहाँ वो एक व्यक्ति नहीं बोलता है I लाल क़िले से सवा-सौ करोड़ देशवासियों की आवाज़ गूँजती है I उनके सपनों को शब्दबद्ध करने की कोशिश होती है और मुझे ख़ुशी है कि पिछले 3 साल से लगातार 15 अगस्त निमित्त देश के हर कोने से मुझे सुझाव मिलते हैं कि मुझे 15 अगस्त पर क्या कहना चाहिए? किन मुद्दों को लेना चाहिए? इस बार भी मैं आपको निमंत्रित करता हूँ I MyGov पर या तो NarendraModiApp पर आप अपने विचार मुझे ज़रूर भेजिए I मैं स्वयं ही उसे पढ़ता हूँ और 15 अगस्त को जितना भी समय मेरे पास है, उसमें इसको प्रगट करने का प्रयास करूँगा I पिछले 3 बार के मुझे मेरे 15 अगस्त के भाषणों में एक शिकायत लगातार सुनने को मिली है कि मेरा भाषण थोड़ा लम्बा हो जाता है I इस बार मैंने मन में कल्पना तो की है कि मैं इसे छोटा करूँ I ज्यादा से ज्यादा 40-45-50 मिनट में पूरा करूँ I मैंने मेरे लिये नियम बनाने की कोशिश की है; पता नहीं, मैं कर पाऊँगा कि नहीं कर पाऊँगा I लेकिन मैं इस बार कोशिश करने का इरादा रखता हूँ कि मैं मेरा भाषण छोटा कैसे करूँ! देखते हैं, सफलता मिलती है कि नहीं मिलती है I
मैं देशवासियो, एक और भी बात आज करना चाहता हूँ | भारत की अर्थव्यवस्था में एक सामाजिक अर्थशास्त्र है | और उसको हमने कभी भी कम नहीं आँकना चाहिए | हमारे त्योहार, हमारे उत्सव, वो सिर्फ़ आनंद-प्रमोद के ही अवसर हैं, ऐसा नहीं है | हमारे उत्सव, हमारे त्योहार एक सामाजिक सुधार का भी अभियान हैं | लेकिन उसके साथ-साथ हमारे हर त्योहार, ग़रीब-से-ग़रीब की आर्थिक ज़िन्दगी के साथ सीधा सम्बन्ध रखते हैं | कुछ ही दिन के बाद रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, उसके बाद गणेश उत्सव, उसके बाद चौथ चन्द्र, फिर अनंत चतुर्दशी, दुर्गा पूजा, दिवाली - एक-के-बाद, एक-के-बाद-एक और यही समय है जब ग़रीब के लिये, आर्थिक उपार्जन के लिये अवसर मिलता है | और इन त्योहारों में एक सहज स्वाभाविक आनंद भी जुड़ जाता है | त्योहार रिश्तों में मिठास, परिवार में स्नेह, समाज में भाईचारा लाते हैं | व्यक्ति और समाज को जोड़ते हैं | व्यक्ति से समष्टि तक की एक सहज यात्रा चलती है | ‘अहम् से वयम्’ की ओर जाने का एक अवसर बन जाती है | जहाँ तक अर्थव्यवस्था का सवाल है, राखी के कई महीनों पहले से सैकड़ों परिवारों में छोटे-छोटे घरेलू उद्योगों में राखियाँ बनाना शुरू हो जाती हैं | खादी से लेकर के रेशम के धागों की, न जाने कितनी तरह की राखियाँ और आजकल तो लोग homemade राखियों को ज्यादा पसंद करते हैं | राखी बनाने वाले, राखियाँ बेचने वाले, मिठाई वाले - हज़ारों-सैकड़ों का व्यवसाय एक त्योहार के साथ जुड़ जाता है | हमारे अपने ग़रीब भाई-बहन, परिवार इसी से तो चलते हैं | हम दीपावली में दीप जलाते हैं, सिर्फ़ वो प्रकाश-पर्व है, ऐसा ही नहीं है, वो सिर्फ़ त्योहार है, घर का सुशोभन है, ऐसा नहीं है | उसका सीधा-सीधा सम्बन्ध छोटे-छोटे मिट्टी के दिये बनाने वाले उन ग़रीब परिवारों से है | लेकिन जब आज मैं त्योहारों और त्योहार के साथ जुड़े ग़रीब की अर्थव्यवस्था की बात करता हूँ, तो साथ-साथ मैं पर्यावरण की भी बात करना चाहूँगा |
मैंने देखा है कि कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि मुझसे भी देशवासी ज़्यादा जागरूक हैं, ज़्यादा सक्रिय हैं | पिछले एक महीने से लगातार पर्यावरण के प्रति सजग नागरिकों ने मुझे चिट्ठियाँ लिखी हैं | और उन्होंने आग्रह किया है कि आप गणेश चतुर्थी में eco-friendly गणेश की बात समय से पहले बताइए, ताकि लोग मिट्टी के गणेश की पसंद पर अभी से योजना बनाएँ | मैं सबसे पहले तो ऐसे जागरूक नागरिकों का आभारी हूँ | उन्होंने मुझे आग्रह किया है कि मैं समय से पहले इस विषय पर कहूँ | इस बार सार्वजनिक गणेशोत्सव का एक विशेष महत्व है | लोकमान्य तिलक जी ने इस महान परम्परा को प्रारंभ किया था | ये वर्ष सार्वजनिक गणेशोत्सव का 125वाँ वर्ष है | सवा-सौ वर्ष और सवा-सौ करोड़ देशवासी - लोकमान्य तिलक जी ने जिस मूल भावना से समाज की एकता और समाज की जागरूकता के लिये, सामूहिकता के संस्कार के लिये सार्वजनिक गणेशोत्सव प्रारंभ किया था; हम फिर से एक बार गणेशोत्सव के इस वर्ष में निबंध स्पर्द्धायें करें, चर्चा सभायें करें, लोकमान्य तिलक के योगदान को याद करें | और फिर से तिलक जी की जो भावना थी, उस दिशा में हम सार्वजनिक गणेशोत्सव को कैसे ले जाएँ | उस भावना को फिर से कैसे प्रबल बनाएं और साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा के लिए eco-friendly गणेश, मिट्टी से बने हुए ही गणेश, ये हमारा संकल्प रहे | और इस बार तो मैंने बहुत जल्दी कहा है; मुझे ज़रूर विश्वास है कि आप सब मेरे साथ जुड़ेंगे और इससे लाभ ये होगा कि हमारे जो ग़रीब कारीगर हैं, ग़रीब जो कलाकार हैं, जो मूर्तियाँ बनाते हैं, उनको रोज़गार मिलेगा, ग़रीब का पेट भरेगा | आइए, हम हमारे उत्सवों को ग़रीब के साथ जोड़ें, ग़रीब की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ें, हमारे त्योहार का आनंद ग़रीब के घर का आर्थिक त्योहार बन जाए, आर्थिक आनंद बन जाए - ये हम सब का प्रयास रहना चाहिए | मैं सभी देशवासियों को आने वाले अनेकविद त्योहारों के लिये, उत्सवों के लिये, बहुत-बहुत शुभकामनायें देता हूँ |
    मेरे प्यारे देशवासियो, हम लोग लगातार देख रहे हैं कि शिक्षा का क्षेत्र हो, आर्थिक क्षेत्र हो, सामाजिक क्षेत्र हो, खेलकूद हो - हमारी बेटियाँ देश का नाम रोशन कर रही हैं, नई-नई ऊँचाइयाँ प्राप्त कर रही हैं | हम देशवासियों को हमारी बेटियों पर गर्व हो रहा है, नाज़ हो रहा है | अभी पिछले दिनों हमारी बेटियों ने महिला क्रिकेट विश्व कप में शानदार प्रदर्शन किया | मुझे इसी सप्ताह उन सभी खिलाड़ी बेटियों से मिलने का मौक़ा मिला | उनसे बातें करके मुझे बहुत अच्छा लगा, लेकिन मैं अनुभव कर रहा था कि World Cup जीत नहीं पाईं, इसका उन पर बड़ा बोझ था | उनके चेहरे पर भी उसका दबाव था, तनाव था | उन बेटियों को मैंने कहा और मैंने मेरा एक अलग मूल्यांकन दिया | मैंने कहा – देखिए, आजकल media का ज़माना ऐसा है कि अपेक्षायें इतनी बढ़ा दी जाती हैं, इतनी बढ़ा दी जाती हैं और जब सफ़लता नहीं मिलती है, तो वो आक्रोश में परिवर्तित भी हो जाती है | हमने कई ऐसे खेल देखे हैं कि भारत के खिलाड़ी अगर विफल हो गए, तो देश का ग़ुस्सा उन खिलाड़ियों पर टूट पड़ता है | कुछ लोग तो मर्यादा तोड़ करके कुछ ऐसी बातें बोल देते हैं, ऐसी चीज़ें लिख देते हैं, बड़ी पीड़ा होती है | लेकिन पहली बार हुआ कि जब हमारी बेटियाँ विश्व कप में सफ़ल नहीं हो पाईं, तो सवा-सौ करोड़ देशवासियों ने उस पराजय को अपने कंधे पर ले लिया | ज़रा-सा भी बोझ उन बेटियों पर नहीं पड़ने दिया, इतना ही नहीं, इन बेटियों ने जो किया, उसका गुणगान किया, उनका गौरव किया | मैं इसे एक सुखद बदलाव देखता हूँ और मैंने इन बेटियों को कहा कि आप देखिए, ऐसा सौभाग्य सिर्फ़ आप ही लोगों को मिला है | आप मन में से निकाल दीजिए कि आप सफल नहीं हुए हैं | मैच जीते या न जीते, आप ने सवा-सौ करोड़ देशवासियों को जीत लिया है | सचमुच में हमारे देश की युवा पीढ़ी, ख़ासकर के हमारी बेटियाँ सचमुच में देश का नाम रोशन करने के लिए बहुत-कुछ कर रही हैं | मैं फिर से एक बार देश की युवा पीढ़ी को, विशेषकर के हमारी बेटियों को ह्रदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूँ | शुभकामनायें देता हूँ |
    मेरे प्यारे देशवासियो, फिर एक बार स्मरण कराता हूँ अगस्त क्रान्ति को, फिर एक बार स्मरण करा रहा हूँ 9 अगस्त को, फिर एक बार स्मरण करा रहा हूँ 15 अगस्त को, फिर एक बार स्मरण करा रहा हूँ 2022, आज़ादी के 75 साल | हर देशवासी संकल्प करे, हर देशवासी संकल्प को सिद्ध करने का 5 साल का roadmap तैयार करे | हम सबको देश को नयी ऊँचाइयों पर पहुँचाना है, पहुँचाना है और पहुँचाना है | आओ, हम मिल करके चलें, कुछ-न-कुछ करते चलें | देश का भाग्य, भविष्य उत्तम हो के रहेगा, इस विश्वास के साथ आगे बढ़ें | बहुत-बहुत शुभकामनायें | धन्यवाद |

***************  

Thursday 13 July 2017

Of a First Radio Talk and Jainsem Joys!

So much heat has been generated on the Jainsem recently with the infamous incident at Delhi Golf Club where a Khasi lady was asked to leave as her traditional attire was found unsuitable by uninformed Club officials. I am reminded how excited I was to find the Jainsem still in fashion when I went to Shillong after a hiatus of thirty years.  And how it became the subject of my first radio programme there. I dug up the piece below from my journal of 2012.


Shillong rolled out a purple carpet for me that summer of 2012. All the way up from Barapani. Masses of purple clouds on the treetops, a gentle purple rain as the petals fluttered down…pooling into soft purple rugs beneath. The jacaranda was in full bloom. As if to welcome me back. After thirty years. Back from Delhi on a two-year tenure transfer.
From my “Room on the Roof”* of All India Radio’s North Eastern Service, I could look out on a hill side flecked with the same purple. From my office window I was looking straight across a hollow into the windows of Saint Mary’s College, where an 18-year-old had gazed out from a classroom once.
It is good to be back, I told the ghost of that girl. And turned away from the window to take stock of my new assignment. Content generation for the English and Hindi women’s programmes on radio. But how and where would one begin? What are the trends and topics of this town, of the North-east? Who would be my talkers, my experts? How was I to find them? I knew not a single soul in town. Assailed by waves of doubt, I decided to go for a walk.
Ambling past the ornate gates of Rajbhavan, my feet took me around a bend of the Ward’s Lake – as green and serene as I remembered it. I crossed the old tea planters’ clubhouse, paused to admire the gracious proportions of a period church, and then found myself among the teeming crowds of Police Bazaar.
My eyes were making a note of the changes. Gone were many of the classic Assam type houses –nestled in a garden with hedges – with their bright red tin roofs, chimneys, gurgling rainwater pipes distinctive windows with a profusion of glass panes, so typical of Shillong once. Ugly Lego blocks of newer constructions were conspiring to block out the sky everywhere.
Change is the only constant, I tell myself. And then I see something that hasn’t changed! Fluttering and flapping in the sharp breeze, they crowd into my vision. Like so many butterflies. In jewelled tints and pastel hues. Bold geometric motifs and soft floral patterns. I notice them in swelling numbers in the busy lanes of police Bazaar. The jainsem—traditional dress of the khasi women—is still very much in vogue!
Here is a topic, I tell myself. This unique, attractive, practical garment—a dress for all seasons. And all reasons. Made simply of two strips of rectangular cloth, tied crosswise over both the shoulders and dropping neatly down to a little above the ankles.

AIR Shillong staff proudly sporting the Jainsem


Meghalaya, so rich in lore and legend, would throw up one on this dress from ancient times, I am convinced.
Dr Anita Panda, acclaimed teacher, author and broadcaster, would later put together a much appreciated radio talk on the legend of the jainsem. Dr Panda and I agree that this is a distinctive dress, and is donned proudly by the elderly as well as the young, modern, globalised Khasi women.
Flipping through some anthropological tomes in the library of All India Radio, I realize that both in villages as well as towns, that chief features of the traditional women’s dress are still retained from the times P R T Gurdon and other scholars who recorded their observations. And that the Khasi female dress is very peculiarly their own and cannot be related to the apparel of any neighbouring people.
I am told that the radio talk – “Jainsem - Ek Parampara, Ek Pehchaan” still plays on, and I am happy to see on visits to Shillong that the Jainsem goes on!
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

  *Ruskin Bond’s first novel.