Monday 14 May 2012

रचनात्‍मक बेचैनी का सबूत है, भाषा का संस्‍कार - डॉ.धनंजय वर्मा


आकाशवाणी भोपाल राजभाषा कार्यान्‍वयन समिति द्वारा दुष्‍यंत कुमार स्‍मारक पांडुलिपि संग्रहालय के सहयोग से विगत 2 मई 2012 की शाम भारत भवन, भोपाल के अंतरंग सभागार में हिन्‍दी के प्रख्‍यात लेखक, कवि, उपन्‍यासकार व हिन्‍दी गजल के पुरोधा स्‍व.श्री दुष्‍यंत कुमार को समर्पित एक व्‍याख्‍यान,       'भाषा का खादी संस्‍कार व सौन्‍दर्य' विषय पर आयोजित किया गया। कार्यक्रम के अतिथि वक्‍ता हिन्‍दी के वरिष्‍ठ साहित्‍यकार डॉ.धनंजय वर्मा ने ' कहा कि भाषा विचार विनिमय और भाव सम्‍प्रेषण का माध्‍यम है। वह भावना और अनुभूति, चिन्‍तन और मनन का भी माध्‍यम है। इसे व्‍यक्ति प्रयत्‍नपूर्वक अनुकरण कर अर्जित करता है। भाषा की प्रकृति कठिनता से सरलता की ओर जाने वाली होती है। संस्‍कृति, भाषा और नस्‍ल कभी शुद्ध नहीं होती। सरिता के प्रवाह की तरह उसमें अनेकों धाराएं मिलती हैं। आदान-प्रदान से ही उसका विकास होता है। भाषा हमेशा जनभाषा के रूप में जीवित रहती है। अकादमिक परिसरों में तो उसका शास्‍त्र गढा जाता है, लेकिन फिर वह लोक के बीच चलती जाती है। उसका विकास कल-कारखानों, हाट-बाजारों में होता है।

गांधी जी ने जन उपयोग की खादी के साथ जनभाषा हिन्‍दुस्‍तानी का महत्‍व समझाया था। खादी उनके लिए सामान्‍य जन से जुडने का माध्‍यम और स्‍वराज्‍य प्राप्ति का साधन थी। खादी का संस्‍कार, जन संस्‍कार और खादी का सौंदर्य, श्रम का सौंदर्य है। स्‍वतंत्रता के बाद भूमंडलीकरण की वजह से खादी के प्रति अवहेलना और उपेक्षा की मानसिकता विकसित हुई। शासकों और आभिजात्‍यवादी बुद्धिजीवियों, लेखकों, कवियों में भी 'भाषा का अवमूल्‍यन' और 'भाषा को भ्रष्‍ट' करने की प्रवृति बढी । नवलेखन में भाषा का जनतंत्रीकरण उन्‍हें व्‍यवसायीकरण लगा।

दरअसल यह जन से जुडने, उस तक पहुंचने की रचनात्‍मक बेचैनी का सबूत है। जैसे खादी जनचेतना संस्‍कार की मिसाल है। कबीर और तुलसी, निराला और नागार्जुन, भवानी प्रसाद मिश्र और दुष्‍यंत कुमार, धूमिल और लीलाधर मंडलोई की भाषा इसी 'खादी संस्‍कार' और 'खादी सौन्‍दर्य' की वजह से इतनी अपनी और सार्थक लगती है।
आकाशवाणी भोपाल राजभाषा कार्यान्‍वयन समिति के सदस्‍य सचिव व सहायक निदेशक राजीव श्रीवास्‍तव ने कहा कि भाषा के विकसित होने में उस देश, क्षेत्र तथा उस भूभाग की संस्‍कृति व समाज के मध्‍य मौजूद संस्‍कार भाषा के बीच पैठकर, भाषा के संस्‍कार के रूप में स्‍थापित हो जाते हैं तथा भाषा के सौंदर्य को बढाने में उत्‍प्रेरक का कार्य करते हैं।
आकाशवाणी के महानिदेशक श्री लीलाधर मंडलोई ने  कहा कि आकाशवाणी की भाषा की कल्‍पना के मूल में बोले हुए शब्‍दों की महिमा थी। इस महिमा का जादू महात्‍मा गांधी जानते थे। भारतेन्‍दु युग के गद्य साहित्‍य में हिन्‍दी की शैली को निखारने वाले शिक्षकों की एक लंबी फेहरिस्‍त है। खडी बोली की एक शताब्‍दी से ज्‍यादा की यात्रा में अनेक देशी-विदेशी भाषाओं के साथ , लोकभाषाओं और बोलियों के शब्‍दों ने हिन्‍दी भाषा को समृद्ध करते हुए उसे जनभाषा बना दिया। उसकी आत्‍मा तिस पर पूर्णत: स्‍वदेशी बनी रही। वह भाषा के खादी संस्‍कार से युक्‍त निजभाषा है जिसने आजादी के इतिहास में ऐतिहासिक भूमिका का निर्वहन किया।

कार्यक्रम के आरंभ में आकाशवाणी भोपाल के कार्यालय प्रमुख श्री रवीन्‍द्र गोयल के अलावा             श्री रामस्‍वरूप रतौनिया, श्री अनिल श्रीवास्‍तव, श्री राजीव श्रीवास्‍तव  व श्री राजुरकर राज ने अतिथि वक्‍ता डॉ. धनंजय वर्मा का पुष्‍पगुच्‍छ से स्‍वागत किया। इसके अलावे श्री धर्मेंद्र श्रीवास्‍तव, श्री एमके पांडे, श्री जगदीश अधिकारी, साकेत अग्निहोत्री, राकेश ढौंडियाल,एस.पी.सिंह, श्रीमति वर्षा शर्मा, श्री राजेश वन्‍जानी आदि ने आयोजन में दुष्‍यंत कुमार स्‍मारक पांडुलिपि संग्रहालय का सक्रिय सहयोग रहा।

कार्यक्रम का संचालन वरिष्‍ठ उद़घोषक  डॉ.अरविन्‍द सोनी ने किया और उसका संपादन वरिष्‍ठ उद़घोषक श्री अनिल मुंशी द्वारा किया गया।    

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