बेगम अख़्तर को उसी स्टूडियो में याद किया गया
जहां वह कभी गाती थीं
मल्लिका-ए-ग़ज़ल बेगम अख़्तर ने अपनी बहुत सारी ग़ज़लों की पहली रिकार्डिंग आकाशवाणी लखनऊ में करवायी थी। उनकी यादों का गवाह वह स्टूडियों नं0-1 है, जो आज आकाशवाणी लखनऊ के सभाकक्ष में तब्दील हो गया है। आकाशवाणी लखनऊ के पुराने कर्मियों के जे़हन में आज भी बेगम अख़्तर से जुड़ी बहुत सी यादें ताजा हैं और सब ने उन्हीं यादों को सामने रखा ‘‘बेगम अख़्तर स्मृति संगीत सभा" में। इस सभा का आयोजन आकाशवाणी लखनऊ ने बेगम अख़्तर की 38वीं पुण्यतिथि के अवसर पर किया।
बेगम अख़्तर की बहुत सारी संगीत रचनाओं के लिए धुन बनाने वाले, आकाशवाणी के भूतपूर्व संगीत संयोजक 88 वर्षीय विनोद चटर्जी ने बेगम अख़्तर की खूबियों का ज़िक्र किया तो उस दौर में ट्रांसमिशन इंचार्ज रहे आकाशवाणी के भूतपूर्व सहायक केन्द्र निदेशक के.के. श्रीवास्तव ने बेगम अख़्तर से अपने आत्मीय रिश्तों का खुलासा किया। बेगम अख़्तर की मृत्यु के पश्चात संगीतकार मदन मोहन का आकाशवाणी लखनऊ आना और उनकी याद में फूट-फूट कर रोना भी इन्हीं संस्मरणों का हिस्सा था। इस संगीत संध्या में विनोद चटर्जी ने खुमार बाराबंकवी की ग़ज़ल सुनाई
‘‘क्या हुआ हुस्न है हमसफर या नहीं
इश्क मंजिल ही मंजिल है रास्ता नहीं,’’
‘‘नज़र से ढल के उभरते हैं दिल के अफसाने
ये और बात है दुनिया नज़र न पहचाने’’
कार्यक्रम में भातखण्डे सम विश्वविद्यालय की शिक्षिका डा सीमा भारद्वाज ने बेगम अख़्तर द्वारा गायी गजलों को सुनाया।
‘‘कोई यह कह दे गुलशन गुलशन
लाख बलाएं, एक नशेमन’’
‘‘दिल ए नादां तुझे हुआ क्या है
आखि़र इस दर्द की दवा क्या है’’
इस संगीत संघ्या को फैजाबाद के डा हरि प्रसाद दूबे ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में आकाशवाणी लखनऊ के अपर महानिदेशक श्री गुलाबचन्द, सहायक निदेशक पृथ्वीराज चौहान, कार्यक्रम अधिशासी डा महेन्द्र पाठक, प्रफुल्ल त्रिपाठी, रश्मि चैधरी, अर्चना प्रसाद, शर्मिला गोस्वामी के अतिरिक्त बड़ी संख्या में संगीत प्रेमी उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन आसिफा फाखरी ने किया।
बेगम अख्तर की गजलों की रिकार्डिंग्स आकाशवाणी आर्काइब में उपलब्ध है और आप इन्हें खरीद सकते हैं -