गिरिजा कुमार
माथुर स्मृति व्याख्यानमाला में बोलते हुए श्री पवन माथुर
आकाशवाणी महानिदेशालय
द्वारा 15 सितम्बर, 2011 को गिरिजा कुमार
माथुर स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन आकाशवाणी, दिल्ली के प्रसारण भवन में किया गया।
सर्वप्रथम श्री लीलाधर मंडलोई, महानिदेशक आकाशवाणी ने गिरिजा कुमार माथुर के
परिवार से आए हुए उनके बेटे श्री पवन माथुर एवं श्री सुधीश पचैरी का पुष्पगुच्छ से
स्वागत किया तथा स्व.माथुर जी की तस्वीर पर पुष्प अर्पित किए। इसके उपरांत
पारिवारिक सदस्यों ने कुछ रोचक संस्मरण सुनाये जिससे कवि के पारिवारिक व्यक्तित्व
की याद हमारे मस्तिष्क में पुनः कौध गई।
गिरिजा कुमार माथुर हिन्दी कविता में गहरी
रूचि रखने वाले तारसप्तक के प्रसिद्ध कवि रहे एवं उनका पहला काव्य संग्रह ‘‘मंजीर’’ 1914 में प्रकाशित हुआ।
गिरिजा कुमार माथुर जी ने कई यूरोपीय देशों का भ्रमण किया एवं अन्तर्राष्ट्रीय
अनुभव प्राप्त किया। इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए., एल.एल.बी.किया। 1976 में ‘विविध भारती दिल्ली’ के निदेशक बने। इसके
उपरांत उपमहानिदेशक आकाशवाणी एवं दूरदर्शन रहे। नई कविता के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर
होने के कारण कई सरकारी एवं गैरसरकारी सम्मान प्राप्त किए। ‘मंजीर’, ‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’ एवं ‘साक्षी रहे वर्तमान’ इनके प्रसिद्ध कविता
संग्रह हैं। 10 जनवरी, 1994 को गिरिजा कुमार माथुर जी का देहान्त हुआ। इनकी स्मृति में आयोजित प्रथम
व्याख्यानमाला का भाषण सुप्रसिद्ध लेखक एवं मीडिया विशेषज्ञ श्री सुधीश पचैरी द्वारा ‘‘मीडिया की भाषा’’ विषय पर दिया गया। अपने प्रभावशाली वक्तव्य में श्री पचैरी जी ने कहा कि
मीडिया की भाषा, जनभाषा, सरल, एवं सुबोध भाषा ही होनी चाहिए। उन्होंने जनभाषा को समाज और संस्कृति से
प्रभावित मानते हुए सरल एवं सुबोध शैली में अभिव्यक्त की गई भाषा को जनसंपर्क एवं
जनस्रोतों की भाषा स्वीकार किया।
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