प्यारे देशवासियो:
1. हमारी स्वतंत्रता की 69वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या
पर मैं देश विदेश में रह रहे अपने सभी बहनों और भाइयों को हार्दिक बधाई देता हूं।
2. अपना 70वां
स्वतंत्रता दिवस मनाते हुए, मैं हमारे स्वतंत्रता संग्राम के
उन सभी ज्ञात और अज्ञात शूरवीरों को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं जिन्होंने हमें
स्वतंत्रता दिलाने के लिए संघर्ष किया, कष्ट उठाया और अपना
जीवन न्योछावर कर दिया महात्मा गांधी के ओजस्वी नेतृत्व से अन्तत: 1947 में अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। 1947 में जब
हमने स्वतंत्रता हासिल की, किसी को यह विश्वास नहीं था कि
भारत में लोकतंत्र बना रहेगा तथापि सात दशकों के बाद सवा अरब भारतीयों ने अपनी
संपूर्ण विविधता के साथ इन भविष्यवाणियों को गलत साबित कर दिया। हमारे संस्थापकों
द्वारा न्याय, स्वतंत्रता, समता और
भाईचारे के चार स्तंभों पर निर्मित लोकतंत्र के सशक्त ढांचे ने आंतरिक और बाहरी
अनेक जोखिम सहन किए हैं और यह मजबूती से आगे बढ़ा है।
प्यारे देशवासियो:
3. मैं आज पांचवीं बार स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आपसे बात कर रहा
हूं। पिछले चार वर्षों के दौरान, मैंने संतोषजनक ढंग से एक
दल से दूसरे दल को, एक सरकार से दूसरी सरकार को और एक पीढ़ी
से दूसरी पीढ़ी को सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के साथ एक स्थिर और प्रगतिशील
लोकतंत्र की पूर्ण सक्रियता को देखा है। राजनीतिक विचार की अलग-अलग धाराओं के
बावजूद, मैंने सत्ताधारी दल और विपक्ष को देश के विकास,
एकता, अखंडता और सुरक्षा के राष्ट्रीय कार्य
को पूरा करने के लिए एक साथ कार्य करते हुए देखा है। संसद के अभी सम्पन्न हुए सत्र
में निष्पक्षता और श्रेष्ठ परिचर्चाओं के बीच वस्तु और सेवा कर लागू करने के लिए
संविधान संशोधन बिल का पारित होना हमारी लोकतांत्रिक परिपक्वता पर गौरव करने के
लिए पर्याप्त है।
4. इन चार वर्षों में, मैंने कुछ अशांत, विघटनकारी और असहिष्णु शक्तियों को सिर उठाते हुए देखा है। हमारे
राष्ट्रीय चरित्र के विरुद्ध कमजोर वर्गों पर हुए हमले पथभ्रष्टता है, जिससे सख्ती से निपटने की आवश्यकता है। हमारे समाज और शासनतंत्र की
सामूहिक समझ ने मुझे यह विश्वास दिलाया है कि ऐसे तत्त्वों को निष्क्रिय कर दिया
जाएगा और भारत की शानदार विकास गाथा बिना रुकावट के आगे बढ़ती रहेगी।
5. हमारी महिलाओं और बच्चों को दी गई सुरक्षा और हिफाजत देश और समाज की
खुशहाली सुनिश्चित करती है। एक महिला या बच्चे के प्रति हिंसा की प्रत्येक घटना
सभ्यता की आत्मा पर घाव कर देती है। यदि हम इस कर्तव्य में विफल रहते हैं तो हम एक
सभ्य समाज नहीं कहला सकते।
प्यारे देशवासियो:
6. लोकतंत्र का अर्थ सरकार चुनने के लिए समय-समय पर किए गए कार्य से कहीं
अधिक है। स्वतंत्रता के विशाल वृक्ष को लोकतंत्र की संस्थाओं द्वारा निरंतर पोषित
करना चाहिए। समूहों और व्यक्तियों द्वारा विभाजनकारी राजनीतिक इरादे वाले व्यवधान,
रुकावट और मूर्खतापूर्ण प्रयास से संस्थागत उपहास और संवैधानिक
विध्वंस के अलावा कुछ हासिल नहीं होता है। परिचर्चा भंग होने से सार्वजनिक संवाद
में त्रुटियां ही बढ़ती हैं।
7. हमारा संविधान न केवल एक राजनीतिक और विधिक दस्तावेज है बल्कि एक
भावनात्मक, सांस्कृतिक और सामाजिक करार भी है। मेरे विशिष्ट
पूर्ववर्ती डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पचास वर्ष पहले स्वतंत्रता दिवस की पूर्व
संध्या पर कहा था, ‘‘हमने एक लोकतांत्रिक संविधान अपनाया
है। यह मानककृत विचारशीलता और कार्य के बढ़ते दबावों के समक्ष हमारी व्यैक्तिकता
को बनाए रखने में सहायता करेगा.... लोकतांत्रिक सभाएं सामाजिक तनाव को मुक्त करने
वाले साधन के रूप में कार्य करती हैं और खतरनाक हालात को रोकती हैं। एक प्रभावी
लोकतंत्र में, इसके सदस्यों को विधि और विधिक शक्ति को
स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। कोई व्यक्ति, कोई
समूह स्वयं विधि प्रदाता नहीं बन सकता।’’
8. संविधान में राष्ट्र के प्रत्येक अंग का कर्तव्य और दायित्व स्पष्ट किया
गया है। जहां तक राष्ट्र के प्राधिकरणों और संस्थानों की बात है, इसने ‘मर्यादा’ की प्राचीन
भारतीय परंपरा को स्थापित किया है। कार्यकर्ताओं को अपने कर्तव्य निभाने में इस ‘मर्यादा’ का पालन करके संविधान की मूल भावना को कायम
रखना चाहिए।
प्यारे देशवासियो :
9. एक अनूठी विशेषता जिसने भारत को एक सूत्र में बांध रखा है, वह एक दूसरे की संस्कृतियों, मूल्यों और आस्थाओं के
प्रति सम्मान है। बहुलवाद का मूल तत्त्व हमारी विविधता को सहेजने और अनेकता को
महत्त्व देने में निहित है। आपस में जुड़े हुए वर्तमान माहौल में, एक देखभालपूर्ण समाज धर्म और आधुनिक विज्ञान के समन्वय द्वारा विकसित किया
जा सकता है। स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था, ‘‘विभिन्न
प्रकार के पंथों के बीच सहभावना आवश्यक है, यह देखना होगा कि
वे साथ खड़े हों या एकसाथ गिरें, एक ऐसी सहभावना जो परस्पर
सम्मान न कि अपमान, सद्भावना की अल्प अभिव्यक्ति को बनाए
रखने से पैदा हो।’’
10. यह सच है, जैसा कि 69 वर्ष
पहले आज ही के दिन पंडित नेहरू ने एक प्रसिद्ध भाषण में कहा था कि एक राष्ट्र के
इतिहास में, ऐसे क्षण आते हैं जब हम पुराने से नए की ओर कदम
बढ़ाते हैं, जब एक राष्ट्र की आत्मा को अभिव्यक्ति प्राप्त
होती है। परंतु यह अनुभव करना आवश्यक है कि ऐसे क्षण अनायास ही भाग्य की वजह से न
आएं। एक राष्ट्र ऐसे क्षण पैदा कर सकता है और पैदा करने के प्रयास करने चाहिए।
हमें अपने सपनों के भारत का निर्माण करने के लिए भाग्य को अपनी मुट्ठी में करना
होगा। सशक्त राजनीतिक इच्छाशक्ति के द्वारा, हमें एक ऐसे
भविष्य का निर्माण करना होगा जो साठ करोड़ युवाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाए,
एक डिजीटल भारत, एक स्टार्ट-अप भारत और एक कुशल
भारत का निर्माण करे। हम सैकड़ों स्मार्ट शहरों, नगरों और
गांवों वाले भारत का निर्माण कर रहे हैं, हमें यह सुनिश्चित
करना चाहिए कि वे ऐसे मानवीय, हाइटेक और खुशहाल स्थान बनें
जो प्रौद्योगिकी प्रेरित हों परंतु साथ-साथ सहृदय समाज के रूप में भी निर्मित हों।
हमें अपनी विचारशीलता के वैज्ञानिक तरीके से मेल न खाने वाले सिद्धांतों पर प्रश्न
करके एक वैज्ञानिक प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देना चाहिए और उसे मजबूत करना चाहिए।
हमें यथास्थिति को चुनौती देना और अक्षमता और अव्यवस्थित कार्य को अस्वीकार करना
सीखना होगा। एक स्पर्द्धात्मक वातावरण में, तात्कालिकता और
कुछ अधीरता की भावना आवश्यक गुण होता है।
प्यारे देशवासियो:
11. भारत तभी विकास करेगा, जब समूचा भारत विकास करेगा।
पिछड़े लोगों को विकास की प्रक्रिया में शामिल करना होगा। आहत और भटके लोगों को
मुख्यधारा में वापस लाना होगा। प्रौद्योगिक उन्नति के इस दौर में, व्यक्तियों का स्थान मशीनें ले रही हैं। इससे बचने का एकमात्र उपाय ज्ञान
और कौशल अर्जित करना और नवान्वेषण सीखना है। हमारी जनता की आकांक्षाओं से जुड़े
समावेशी नवान्वेषण समाज के बड़े हिस्से को लाभ पहुंचा सकते हैं और हमारी अनेकता को
भी सहेज सकते हैं। एक राष्ट्र के रूप में हमें रचनात्मकता, विज्ञान
और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना चाहिए। इसमें, हमारे स्कूल
और उच्च शिक्षा संस्थानों का एक विशेष दायित्व है।
12. हम अकसर अपने प्राचीन अतीत की उपलब्धियों पर खुशी मनाते हैं, परंतु अपनी सफलताओं से संतुष्ट होकर बैठ जाना सही नहीं होगा। भविष्य की ओर
देखना ज्यादा जरूरी है। सहयोग करने, नवान्वेषण करने और विकास
के लिए एकजुट होने का समय आ गया है। भारत ने हाल ही में उल्लेखनीय प्रगति की है,
पिछले दशक के दौरान प्रतिवर्ष अधिकतर आठ प्रतिशत से ऊपर की विकास दर
हासिल की गई है। अंतरराष्ट्रीय अभिकरणों ने विश्व की सबसे तेजी से बढ़ रही प्रमुख
अर्थव्यवस्था के रूप में भारत के स्तर को पहचाना है और व्यापार और संचालन के सरल
कार्य-निष्पादन के सूचकांकों में पर्याप्त सुधार को मान्यता दी है। हमारे युवा
उद्यमियों के स्टार्ट-अप आंदोलन और नवोन्मेषी भावना ने भी अंतरराष्ट्रीय ध्यान
आकृष्ट किया है। हमें अपनी मजबूत विशेषताओं में वृद्धि करनी होगी ताकि यह बढ़त
कायम रहे और आगे बढ़ती रहे। इस वर्ष के सामान्य मानसून ने हमें पिछले दो वर्षों,
जब कम वर्षा ने कृषि संकट खड़ा कर दिया था, के
विपरीत खुश होने का कारण दिया है। यह तथ्य कि दो लगातार सूखे वर्षों के बावजूद भी,
मुद्रा-स्फीति 6 प्रतिशत से कम रही और कृषि
उत्पादन स्थिर रहा, हमारे देश के लचीलेपन का और इस बात का भी
साक्ष्य है कि स्वतंत्रता के बाद हमने कितनी प्रगति की है।
प्यारे देशवासियो:
13. हाल के समय में हमारी विदेश नीति में काफी सक्रियता दिखाई दी है। हमने
अफ्रीका और एशिया प्रशांत के पारंपरिक साझीदारों के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को
पुन: सशक्त किया है। हम सभी देशों, विशेषकर अपने निकटतम
विस्तारित पड़ोस के साथ साझे मूल्यों और परस्पर लाभ पर आधारित नए रिश्ते स्थापित
करने की प्रक्रिया में हैं। हम अपनी ‘पड़ोस प्रथम नीति’
से पीछे नहीं हटेंगे। इतिहास, संस्कृति,
सभ्यता और भूगोल के घनिष्ठ संबंध दक्षिण एशिया के लोगों को एक साझे
भविष्य का निर्माण करने और समृद्धि की ओर मिलकर अग्रसर होने का विशेष अवसर प्रदान
करते हैं। इस अवसर को बिना देरी किए हासिल करना होगा। विदेश नीति पर भारत का ध्यान
शांत सह-अस्तित्व और इसके आर्थिक विकास के लिए प्रौद्योगिकी और संसाधनों के उपयोग
पर केंद्रित होगा। हाल में की गई पहलों ने ऊर्जा सुरक्षा में संवर्धन किया है।
खाद्य सुरक्षा को बढ़ाया है और हमारे प्रमुख विकास कार्यक्रमों को आगे ले जाने में
अंतरराष्ट्रीय साझीदारी का सर्जन किया है।
14. विश्व में उन आतंकवादी गतिविधियों में तेजी आई है जिनकी जड़ें धर्म के
आधार पर लोगों को कट्टर बनाने में छिपी हुई हैं। ये ताकतें धर्म के नाम पर निर्दोष
लोगों की हत्या के अलावा भौगोलिक सीमाओं को बदलने की धमकी भी दे रही हैं जो विश्व
शांति के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। ऐसे समूहों की अमानवीय, मूर्खतापूर्ण और बर्बरतापूर्ण कार्यप्रणाली हाल ही में फ्रांस, बेल्जियम, अमरीका, नाइजीरिया,
केन्या और हमारे निकट अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश में दिखाई दी है।
ये ताकतें अब सम्पूर्ण राष्ट्र समूह के प्रति एक खतरा पैदा कर रही हैं। विश्व को
बिना शर्त और एक स्वर में इनका मुकाबला करना होगा।
प्यारे देशवासियो:
15. उन सभी चुनौतियों के लिए जो हमारे सामने हैं, मेरा
प्राचीन देश के रूप में हमारी जन्मजात और विरासत में मिली क्षमता में पूरा विश्वास
है जिसकी मूल भावना तथा जीने और उत्कृष्ट कार्य करने की जिजीविषा का कभी दमन नहीं किया जा सकता। अनेक बाहरी और
आंतरिक शक्तियों ने सहस्राब्दियों से भारत की इस मूल भावना को दबाने का प्रयास
किया है परंतु हर बार यह अपने सम्मुख प्रत्येक चुनौती को समाप्त, आत्मसात और समाहित करके और अधिक शक्तिशाली और यशस्वी होकर उभरी है।
16. भारत ने अपने विशिष्ट सभ्यतागत योगदान के द्वारा अशांत विश्व को बार-बार
शांति और सौहार्द का संदेश दिया है। 1970 में इतिहासकार
आर्नोल्ड टॉयनबी ने समकालीन इतिहास में भारत की भूमिका के बारे में कहा था,
‘‘आज, हम विश्व इतिहास के इस संक्रमणकारी
युग में जी रहे हैं, परंतु यह पहले ही स्पष्ट होता जा रहा है
कि इस पश्चिमी शुरुआत का, यदि इसका अंत मानव जाति के
आत्मविनाश से नहीं हो रहा है तो समापन भारतीय होगा।’’
टॉयनबी ने आगे यह भी कहा कि मानव इतिहास के मुकाम पर, मानवता
की रक्षा का एकमात्र उपाय भारतीय तरीका है।
प्यारे देशवासियो:
17. मैं इस अवसर पर, हमारे सैन्य बलों, अर्द्धसैन्य और आंतरिक सुरक्षा बलों के उन सदस्यों को विशेष बधाई और
धन्यवाद देता हूं जो हमारी मातृभूमि की एकता, अखंडता और
सुरक्षा की चौकसी तथा रक्षा इन्हें कायम रखने के लिए अग्रिम सीमाओं पर डटे हुए
हैं।
18. अंत में मैं एक बार दोबारा उपनिषद का आह्वान करता हूं जैसा कि मैंने चार
वर्ष पूर्व स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर अपने संबोधन में किया था। यह भारत
माता की तरह सदैव जीवंत रहेगी :
‘‘ईश्वर हमारी रक्षा करे
ईश्वर हमारा पोषण करे
हम मिलकर उत्साह और ऊर्जा के
साथ कार्य करें
हमारा अध्ययन श्रेष्ठ हो
हमारे बीच कोई वैमनस्य ना हो
चारों ओर शांति ही शांति हो।’’
जय
हिंद!
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