Saturday, 26 July 2014

अनवरत अमृतधारा - पवित्र गंगा

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vius ns”k Hkkjr dh izeq[k unh xaxk] dsoy ,d ty/kkjk ugha] cfYd Hkkjrh; laLd`fr dh izrhd gSA युगों युगों से भारत के आध्यात्म और वैराग्य को सींचने वाली अनवरत अमृतधार है गंगा. हमारी आस्था ,हमारे जीवन ,हमारी उर्जा और उल्लास की नदी है गंगा पवित्रता और निर्मलता की जलधार है गंगा.मानव के पंचकर्मों में एक है गंगा.शिव का रूप है,विष्णु का अंश है , ब्रह्मपोषित है गंगा. गंगा वो नदी है जो मनुष्य ही नहीं बल्कि देवताओं को भी प्रिय है ..महाकाल ,मृत्युंजय ,महासत्य ,महादेव शिव की प्रिय है गंगा.उनके पुत्रों कार्तिकेय और गणेश को अस्तित्व प्रदान करनेवाली गंगा ही है.तभी तो गणेश को गंगे भी कहते हैं. गंगा के किनारे ही महात्मा बुद्ध को बोधिगति प्राप्त होती है , अपने पाँच शिष्य मिलते हैं. रामायण की कथाओं में गंगा कभी प्रभु राम और केवट के मिलन की साक्षी बनती है तो महाभारत  में शांतनु की पत्नी और भीष्मपितामह की माता बनकर सामने आती है ..भगवद गीता में भगवान कृष्ण स्वयं कहते हैं ‘ मैं नदियों में गंगा हूँ. गंगावतरण से जुडी कई बड़ी रोचक कहानियां हैं.शिवपुराण के अनुसार गंगा हिमालय की पुत्री  और पार्वती की बड़ी बहन हैं .. जब भगवान शिव अपनी पहली पत्नी सती के बलिदान के बाद मानसिक संताप से गुजर रहे थे तब सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने शिव का पुनर्विवाह गंगा से करा दिया.

       मान्यता है कि गंगा ब्रह्मलोक से शिव की जटा में आईं परंतु शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में रोक लिया। राजा भगीरथ के अनुरोध पर उन्होंने अपनी जटाएं निचोड़ कर छोड़ी जिससे अनेक धाराएं निकली। इनमें तीन प्रमुख हैंअलकनंदा मंदाकिनी और भागीरथी। शिव ने अपनी जटा से एक धारा पृथ्वी पर उतारा जिसे मंदाकिनी नदी मानते हैं । दूसरी धारा स्वर्ग चली गईजिसका नाम अलकनंदा हुआ। यही धारा स्वर्ग से उतरकर बद्रिकाश्रम से प्रवाहित होती है। तीसरी धारा भगीरथ के रथ के पीछे चलकर देवप्रयाग आई और भागीरथी कहलाई।

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      हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की दसमी को पृथ्वी पर गंगा का अवतरण हुआ है.ये दिन गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है.ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा में लगाई एक डूबकी पापों से मुक्ति दिला देती है..    
       
       
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      गंगा अवतरण की कथा का आधार भागीरथ ऋषि द्वारा अपने पूर्वज रघुकुल राजा सगर के पुत्रों को मुक्ति दिलाना है जो कपिल मुनि के शाप से भस्म हुए थे  । सगर के पुत्र जहां ऋषि के शाप से भष्म हुए थे वह स्थान पश्चिम बंगाल में स्थित गंगासागर नामक स्थान है जहां गंगा सागर की गोद में समा जाती है।

                गंगा देश की प्राकृतिक संपदा ही नहींजन जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। गंगा नदी नहीं बल्कि एक संस्कृति है। पुराणों में पावनपतितपावनीपापतारिणी गंगा को मां का स्थान  दिया गया है. गंगा हमारी भारतीय सभ्यता रूप है ।

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      उत्तराखंड ls लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है गंगा और अपने सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है।

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      माना जाता है कि काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है इसलिए इस शिवप्रिया नगरी में गंगा का भव्य स्वागत होता है

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      भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान रोज सुबह अपनी शहनाई गंगा जल से धोते थे  ..उन्हें गंगा बहुत प्रिय थी ..जब भी बनारस में होते थे तो गंगा को अपनी शहनाई सुनाना नहीं भूलते थे
      भारतीय साहित्य भी गंगा के स्तुतिगान से अछूता नहीं रहा है .. कई रचनाएँ गंगा को ही समर्पित की गयी है ..पंडित जगन्नाथ की गंगालहरी उनमे से एक है

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      बक्सर से आगे चलकर गंगा पहुँचती है पटना यानि बिहार की राजधानी पाटलिपुत्र .. ean&ean xfr ls iwjc dh vkSj izokfgr gksrh xaxk dh /kkjk jkt/kkuh uxj iVuk igqapus ds igys lj;w rFkk lksu unh dh ty/kkjkvksa dks Hkh vius esa lesV ysrh gSA

      दीपावली के ६ दिन बाद जब छठ पूजा मनाई जाती है तो यहाँ गंगा के घाटों पर आस्था और विश्वास की एक अद्भुत छटा देखने को मिलती  है ...
     

      आगे चलकर गंगा कई हिस्सों में बंटती हुई धरतीलोक पर अपनी यात्रा के अंतिम पड़ाव ‘गंगा सागर’ पहुँचती है .. मान्यता है कि यही वो स्थान है जहाँ माँ गंगा ने भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार किया था

      .. इस स्थान का बहुत सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है ... मकर संक्रांति के दिन यहाँ लाखों लोग स्नान करने आते हैं ..तभी तो कहा जाता है कि ‘सभी तीर्थ बार बार ,गंगासागर एक बार “

      स्वर्ग से धरती पर उतारकर सभी को अपने आँचल में समेटती , दोषमुक्त करती , अभयदान देती गंगा, सागर से मिलकर पाताललोक चली जाती है और त्रिलोकगामिनी बन जाती है  
  
      गाम पृथ्वी गच्छति इति गंगाम
गाम अवयवं गम्यते , इति गंगा

      जो मानव कल्याण के लिए धरती पर उतरती है वो गंगा है ..जो मानव को स्वर्ग तक ले जाती है , वो गंगा है  


      सदियों से भारत की धरती पर बहती हुई गंगा इस देश की पहचान बनी हुई हैं पर अफ़सोस की बात ये है कि वही गंगा अब अपनी पहचान खोती जा रही है।

      गंगा थक रही है ..मर रही है ... अपनी अज्ञानता, लालच और स्वार्थ से हमने इसे इस हद तक प्रदूषित कर दिया है कि आज मोक्षदायिनी गंगा अपने मोक्ष के लिए हमसे मदद मांग रही है..
      भारत में अनादिकाल से ही गंगा जीवनदायिनी और मोक्ष दायिनी रही हैभारतीय संस्कृतिसभ्यता और अस्मिता की प्रतिक रही हैं। उसकी अविरल और निर्मल सतत् धारा के बिना भारतीय अस्तित्व और संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती।

            समय आ गया है कि हम सब उस संकल्प का साथ दें जो गंगा को फिर एक बार अनवरत अमृतधार बनाने के लिए की गयी है ..

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