Tuesday, 29 July 2014

"बदलते समाज मे रेडियो का दायित्व"





भारत में  रेडियो  प्रसारण  के 87 वर्ष पूरे  होने के उपलक्ष्य  मे विगत 23 जुलाई 2014  को आकाशवाणी  दिल्ली द्वारा भारतीय विद्या भवन सभागार , नई दिल्ली  मे आमंत्रित श्रोताओं  के समक्ष   एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।  विषय था - "बदलते समाज में  रेडियो का दायित्व "  इस संगोष्ठी मे प्रख्यात संस्कृतिविद् डॉ कपिला   वात्स्यायन , जाने-माने शिक्षाविद् एवं स्तंभकार प्रो पुष्पेश पंत. राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष  एवं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ मोहिनी गिरी , मानव संसाधन शोध संस्थान के महानिदेशक एवं अर्थशास्त्री  डॉ संतोष के मेहरोत्रा ,तथा वरिष्ठ पत्रकार श्री स्वपन दासगुप्ता, एवं श्री प्रंजॉय गुहा ठाकुरता शामिल हुए।  संगोष्ठी का संचालन  वरिष्ठ  पत्रकार  श्री विजय क्रांति ने किया              


संगोष्ठी के दौरान डॉ कपिला वात्स्यायन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि  बदलते युग मे भी रेडियो की पहुंच घर- घर तक है। परिवर्तन के दौर मे रेडियो कार्यक्रमों की प्रकृति मे भी बदलाव रहा है,  और यह अनपेक्षित नहीं है, पर रेडियो कर्मियों को  अपने सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति आदर का भाव बनाये रखना होगा 



डॉ पुष्पेश पंत ने भारत में रेडियो के इतिहास  का ज़िक्र करते हुए कहा कि औपनिवेशिक काल में  रेडियो ब्रितानी सत्ता की हितचिंता किया करता था , पर आज़ादी के बाद यह देश की तरक्की का साधन बना आपने  श्रोताओ का आव्हान किया कि  वे इस संचार माध्यम का सार्थक उपयोग  रेडियो  कार्यक्रमों मे प्रतिभागिता के ज़रिये करें श्री प्रंजॉय गुहा ठाकुरता ने आकाशवाणी को भारतवर्ष की विविधतापूर्ण  संस्कृति का  सच्चा संवाहक  बतलाते हुए कहा कि  विश्व  के किसी भी देश मे रेडियो चैनल इतनी बड़ी संख्या मे भाषाओ और बोलियों का प्रयोग नहीं करते। आपने देश में आकाशवाणी एफ एम  और सामुदायिक रेडियो केन्द्रो  की संख्या बढ़ाये जाने की जरुरत बतलाई। डॉ मोहिनी गिरी  ने ग्रामीण महिलाओ  के लिए उपयोगी  कार्यक्रमो  की  संख्या बढ़ाने पर बल दिया  साथ ही आपने  रेडियो के कार्यक्रमो  में महिलाओ  की  भागेदारी बढ़ाने की ज़रूरत बतलाई   डॉ गिरी ने कहा कि  आकाशवाणी को अपने संग्रहालयों में  संचित  दुर्लभ निधियों  को जनता के लिए सुलभ बनाना होगा । 
   
 श्री स्वपन  दासगुप्ता ने रेडियो  प्रसारण के क्षेत्र  में  नवीन प्रोधोगिकी के समुचित  प्रयोग की जरुरत बतलाई। श्री  दासगुप्ता ने कहा  कि इंटरनेट रेडियो  जैसी तकनीक  का उपयोग अभी तक काफी सीमित है ।आपने  स्थानीय बोलियो एवं स्थानीय प्रतिभाओ को बढ़ावा देने पर  बल दिया और शास्त्रीय संगीत के प्रचार- प्रसार में रेडियो के दायित्व का स्मरण कर या।   
                                             
 डॉ संतोष के मेहरोत्रा  ने कहा कि  पुराने होने भर से मधुर संगीत अलोकप्रिय नहीं होता  इसके प्रमाण के तौर पर आपने आकाशवाणी के एफ एम गोल्ड चैनल का ज़िक्र  किया,  जिस पर आज भी  पुराने फिल्म गीतों का प्रसारण होता है ।डॉ मल्होत्रा  ने कहा की रेडियो को  जन- कल्याणकारी शासकीय  योजनाओ  के क्रियान्वयन  की निगहबानी करनी होगी,  ताकि जनता का हक़ उसे मिल सके।  आपने युवाओ की विशाल आबादी के अनुपात में रेडियो में  उनकी सहभागिता सुनिश्चित   करने और शास्त्रीय संगीत के लिए अलग चैनल स्थापित  किए जाने की जरुरत बतलाई।
 आकाशवाणी के उप- महानिदेशक  श्री राजीव कुमार शुक्ल ने वक्ताओ  के प्रति धन्यवाद - ज्ञापन किया   वक्ताओं द्वारा रेडियो से जुडी अपनी पुरानी यादों को ताजा किये  जाने पर आपने कहा कि  अगर स्मृतियों से संवाद होता रहे तो सपने भी मुश्किल  से आते है आपने कहा कि  आकाशवाणी इस  बात का ध्यान   रखती  है कि  देश का कोई भी वर्ग उपेक्षित रहे  आकाशवाणी का दिल सिर्फ दिल्ली में ही नहीं वल्कि क्योंझर  और बस्तर में भी धड़कता है  आपने तुर्की के महान कवि नाज़िम हिकमत की काव्य -पंक्ति उद्धरित   करते हुए कहा कि रेडियो की ध्वनि- तरंगें  नीले  आसमान में उड़ने वाले  परिदो की मानिंद हैं   मानवता के विकास की अनंत संभावनाओं  के द्वार  जिस दिशा में खुलते हैंरेडियो के प्रसारणकर्ता उस ओर अग्रसर  हैं 


1 comment:

  1. आकाशवाणी की सार्थकता श्रोताओं द्वारा उसे सुन सकने में है…दिल्लि आकाशवाणी कहीं भी ठीक से सुनाई ही नहीं देति…कुछ लोगों ने हार कर DTH के सहारे रेडियो सुनने का बंदोबस्त है…पर जो नहीं करना चाहते या नहीं कर सकते उनके लिए इंद्रप्रस्थ या राजधानी चैनल के अस्तित्व ही खत्म हो गए। केवल शास्त्रीय ही नहीं बल्कि सुगम संगीत और कई अच्छे spoken words के कार्यक्रम मिस कर जाते हैं और मजबूरन FM पर केवल फ़िल्मी गाने सुनकर संतोष करना पड़ता है. कृपया ट्रांसमीटर पर आप ध्यान दें। नहीं तो मीडियम वेव के कार्यक्रमों को भी FM पर लाएं। नहीं तो ये मानने पर हम मजबूर हो जायेंगे की रेडियो का जान बुझ कर गला घोंटा जा रहा है।

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