यह दिन,समय, क्षण बिहार की मीडिया के लिए एक यादगार दिन बन गया। इतिहास के पन्नों में यह दिन दर्ज हुआ, बिहार में उर्दू समाचार बुलेटिन का आकाशवाणी से प्रसारण को लेकर। आकाशवाणी पटना के प्रादेशिक समाचार की शुरूआत यों तो 28 दिसम्बर, 1959 को ही शुरू हो गया था। हालांकि 26 जनवरी, 1948 को आकाशवाणी, पटना केन्द्र का उद्घाटन हुआ था। जहां तक रेडियों पर समाचार प्रसारण का बिहार से संबंध की बात है तो हिन्दी के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली उर्दू भाषा को तरजीह दी गयी। केन्द्र सरकार ने बिहार को भी उर्दू बुलेटिन के लिए चुना। बिहार में उर्दू बुलेटिन की शुरूआत 16 अप्रैल, 1989 को हुआ। इसके बाद ‘‘इलाकाई खबरें’’ बिना रूके-थके लगातार प्रसारित होते हुए 25 साल का सफर तय कर लिया है। इलाकाई खबरें, उर्दू बुलेटिन ने कई उतार-चढ़ाव को पार किया।
पहला समाचार बुलेटिन आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिशासी शानू रहमान ने पढ़ा। उर्दू बुलेटिन को पत्रकार तारिक फातमी ने तैयार किया। हालांकि मुख्य बुलेटिन हिन्दी में बना, जिसे श्री फातमी ने अनुवाद किया। अनुवाद की यह परिपाटी आज भी बरकरार है। हालांकि उर्दू डेस्क को अलग किये जाने की जरूरत है ताकि उसे अपना अस्तित्व मिल सकें। उर्दू समाचार बुलेटिन ‘‘इलाकाई खबरें’’ कहने के लिए पांच मिनट का है, लेकिन इसके एक-एक शब्द अपने-आप में महत्वपूर्ण होते हैं। हिन्दी से भले ही अनुवाद होता हो लेकिन इसमें उर्दू भाषा की गरिमा कूट-कूट कर भरी रहती है। ऐसा नहीं लगता कि यह अनुवादित है। असकी वजह है जो पत्रकार इसे बनाते हैं वे उर्दू पत्रकारिता के क्षे़त्र में अपनी पहुंच रखते है।
इलाकाई खबरें, को पढ़ने वालों में शुरू से लेकर अब तक उर्दू पत्रकारिता से जुड़े पत्रकारों ने किया है। इनमें उर्दू के वरिष्ठ पत्रकार रेहान गनी, रशीद अहमद, सरफुल होदा आदि प्रमुख हैं। लगभग नौ वर्षों से मेरा पाला उर्दू समाचार बुलेटिन से पड़ता आ रहा है। दोपहर तीन बजकर दस मिनट पर आकाशवाणी, पटना से प्रसारित होने वाले हिन्दी समाचार बुलेटिन को तैयार करता आ रहा हूँ। हिन्दी बुलेटिन की एक प्रति उर्दू डेस्क पर जाती है, जहां उर्दू के पत्रकार उसका अनुवाद उर्दू में करते हैं। यह केवल अनुवाद नहीं होता, बल्कि उसमें उर्दू पत्रकारिता की जान फूंकी जाती है। भाषायी, शब्दों के चयन सहित अन्य पत्रकारिता के अन्य पहलूओं पर बारिकी से नजर रखी जाती है। ऐसा नहीं कि जो हिन्दी की कापी जाती है, उसका एक-एक लाईन, एक-एक शब्द का अनुवाद कर दिया जाय, बल्कि उर्दू डेस्क को यह पूरी छूट रहती है कि वे इलाकाई खबरें, को वे हिन्दी भाषा के तर्ज पर न देकर उर्दू भाषा के मापदंडों के तहत तैयार करें। बुलेटिन में गड़बड़ियां न जायें उस पर उनकी एक सजग पत्रकार की तरह नजर रहती है। अक्सर तकनीकी गड़बड़ियों को ज्यादातर उर्दू डेस्क पकड़ता मिला। इसकी वजह साफ है कि उर्दू डेस्क पर काम करने वाले अनुवादक-सह-वाचक एक तो लंबे समय से आकाशवाणी के उर्दू डेस्क से जुड़े रहें। दूसरा, वे एक मीडियामैन की तरह कार्य करते रहें। तीसरा उनके अंदर उर्दू भाषा को लेकर एक समर्पण दिखा, एक जज्बा दिखा और भाषा को एक मुकाम देने की ललक दिखी।
इलाकाई खबरें, पच्चीस साल का हो गया है। यह आकाशवाणी पटना के लिए गौरव की बात है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इलाकाई खबरें बुलेटिन को लेकर कभी भी किसी स्तर पर शिकायत सुनने को नहीं मिली। यही नहीं उर्दू ने कभी भी, हिन्दी बुलेटिन से दावेदारी नहीं की और न हिन्दी ने ही उर्दू बुलेटिन को कमजोर करने का प्रयास किया। बिहार जहां उर्दू भाषा को दूसरे राज्य भाषा का दर्जा प्राप्त है। ऐसे में इसे बोलने वालों की संख्या भी ज्यादा है। मीडिया के बदलते पैमानों में उर्दू बुलेटिन में भी थोड़ा बदलता स्वरूप दिखा। खासकर पदनाम को लेकर उर्दू में अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल का होना, मुझे अक्सर खटकता रहा, कई बार उर्दू डेस्क से इस संदर्भ में चर्चा भी हुईं, लेकिन हिन्दी का उसका उर्दू शब्द नहीं मिलना और फिर हिन्दी की जगह उर्दू शब्दों को स्वीकार करना इलाकाई खबरें बुलेटिन के लिए एक जरूरी हिस्सा बन गया, हालांकि मैं, अपने संपादन काल में उर्दू डेस्क को सलाह देता रहा कि वे ज्यादा-से-ज्यादा उर्दू शब्दों का ही प्रयोग करें।
उर्दू बुलेटिन इलाकाई खबरें, हिन्दी बुलेटिन के अनुवाद पर ही टिका नहीं है। कई ऐसे मौके आयें, जहां उर्दू डेस्क से हिन्दी डेस्क पर खबरें ली गयी। खासतौर से ईद, बकरीद, या फिर मुसलमानों के पर्व-त्योहारों की खबरों या फिर उर्दू भाषा से संबंधित खबरों को उर्दू डेस्क से ही बनवाया जाता रहा। इस वजह से हिन्दी बुलेटिन में उर्दू शब्दों का समावेश होता रहा, हालांकि आकाशवाणी के प्रादेशिक समाचार के हिन्दी बुलेटिन में हिन्दी, उर्दू में उर्दू और मैथिली शब्दों को ही प्राथमिकता दी जाती रही। अंग्रेजी शब्दों के प्रचलन को हावी नहीं होने दिया गया। आधुनिक मीडिया के दौर में भले ही लोग यह कहें कि रेडियो कौन सुनता हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि बिहार में रेडियों की पकड़-पहुंच बहुत मजबूत है। दूर-दराज क्षेत्रों में इसकी गूंज सुनायी पड़ती है और हिन्दी, मैथिली के साथ-साथ उर्दू बुलेटिन को भी जोश-खरोस के साथ सुना जाता है।
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